
–कोर्ट ने प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारियों भविष्य में एहतियात बरतने को कहा
प्रयागराज, 07 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुकदमों की सुनवाई के दौरान साक्ष्य या बयानों में प्रयोग की गई गाली-गलौज या अभद्र भाषा को रिकॉर्ड करने पर ऐतराज जताया है। साथ ही प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारियों को निर्देश दिया है कि ऐसे शब्द रिकॉर्ड न करें।
न्यायमूर्ति हरवीर सिंह ने वाराणसी के विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट के आदेश के विरुद्ध आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दलीलों या आदेशों में अभद्र या गाली-गलौज युक्त भाषा का प्रयोग अनुचित और अस्वीकार्य है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि न सिर्फ संबंधित अधिकारी बल्कि प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारी ऐसे शब्दों के प्रयोग से बचें, जो मामले के आदेश या गवाह के बयान में प्रयुक्त हुए हैं। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक आदेशों की भाषा में पद की गरिमा और मर्यादा परिलक्षित होनी चाहिए।
विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट ने पुनरीक्षणकर्ता की शिकायत को सीआरपीसी की धारा 203 के तहत यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि विपक्षियों के विरुद्ध कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। इसके विरुद्ध पुनरीक्षणकर्ता ने याचिका में कहा कि गवाहों के बयान पर विचार नहीं किया गया। मामले की मेरिट पर कोर्ट ने कहा कि गवाहों के बयानों में कोई संगति नहीं है और रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से विपक्षियों के विरुद्ध कोई मामला नहीं बनता।
पुनरीक्षण खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि विशेष न्यायाधीश ने आदेश करते समय और गवाह के बयान में अशोभनीय शब्दों का प्रयोग किया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट और इस न्यायालय ने समय-समय पर निर्देश दिया है कि न्यायिक आदेशों या गवाहों के बयान दर्ज करते समय शालीन और सामान्य भाषा का प्रयोग किया जाए लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि विशेष न्यायाधीश ने इन दिशा निर्देशों पर ध्यान नहीं दिया। कोर्ट ने ऐसे शब्दों के प्रयोग से परहेज करने का निर्देश देते हुए कहा कि यह निर्देश प्रदेश के सभी जिला न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों तक पहुंचाया जाए ताकि भविष्य में वे एहतियात बरतें।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
