
मंडी, 01 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । मंडी जिला के पांगणा स्थित अंबरनाथ मंदिर की खुदाई में सुकेत रियासत के इतिहास की गौरवमयी प्रतिमाएं निकली है। सुकेत मध्य हिमालयी पर्वत श्रृंखला में अवस्थित एक राज्य के रूप में 8वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया जब बंगाल के सेन वंश के वीरसेन ने यहां राणाओं व ठाकुरों को पराजित किया। वहीं पर पांडवों की रमणस्थली होने के कारण महाभारतकाल में यह क्षेत्र पांडवांगण नाम से विख्यात हुआ। जो बाद में पांगणा के नाम से जाना जाने लगा। पांडु पुत्र भीम ने यहीं पांगणा के इस अंबरनाथ मंदिर में हिडिंबा से गंधर्व विवाह किया। पांगणा के इस अंबरनाथ मंदिर का विशेष पुरातात्विक महत्व रहा है।
मंदिर में आमलक, भद्रमुख उत्कीर्णित, विशाल प्रस्तर शिलाएं, स्तंभ एवम् मंदिर के प्राचीन अनेक भग्नावशेष मिल रहे हैं जो इस मंदिर का निर्माण छठी से आठवीं शताब्दी के बीच स्थापित करते है।
अंबरनाथ मंदिर के प्रधान जितेंद्र महाजन और सचिव चेतन शर्मा का कहना है कि पिछले वर्ष और इस वर्ष भारी बरसात के कारण क्षतिग्रस्त हुए इस प्राचीन मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य आजकल प्रगति पर है। मंदिर की खुदाई में प्राचीन मंदिर के अनेक अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिससे यह प्रमाणित होता है कि यहां प्राचीन काल में शिखर शैली के मंदिर स्थापित रहा होगा। चार आमलक के प्राप्त होने से यह प्रमाणित होता है कि यहां एक से अधिक मंदिरों का समूह रहा होगा। दो त्रिमुखी भद्रमुख भी प्राप्त हुए हैं जो गुप्त व प्रतिहार वास्तु शिल्प से संबंधित है। अंबरनाथ मंदिर का अस्तित्व महामाया के मंदिर से भी पूर्वकाल का है। चूकि इस मंदिर से जुड़े ऐतिहासिक संदर्भ अति प्राचीन है।
अम्बरनाथ मंदिर के बाहर एक पत्थर से बना स्थानक न॔दी और बैठे हुए न॔दी भगवान का विग्रह पूरे पश्चिमी हिमालय में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है।
पुरातत्व चेतना संघ मण्डी द्वारा स्वर्गीय चंद्रमणी कश्यप राज्य पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डाॅक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि आवश्यकता इस बात की है कि पुरातत्व महत्व के ऐसे मंदिर के पुनर्निर्माण में सजगता व विवेकपूर्ण तरीके से उत्खनन व नींव का कार्य अपेक्षित है।जो विभागीय सहयोग के बगैर असंभव है। पुरातात्विक दृष्टि से उत्खनन न होने से भूमि में मंदिर के भग्नावशेष को क्षति पहुंचेगी और जिसके परिणामस्वरूप इतिहास का प्रतिनिधित्व करते ये पुरातात्विक अवशेष विकृत होकर इतिहास के एक पूरे युग का ही अवसान हो जायेगा। मंदिर के पुरातात्विक अवशेष हमारे प्रदेश की पुरातनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। अत: इनका संरक्षण यहां की संस्कृति का संरक्षण ही है।
ऐतिहासिक नगरी पांगणा-सुुकेत के निवासी भी चाहते हैं कि इस प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर का उत्खनन कार्य भाषा एवं संस्कृति निदेशालय की देखरेख में हो।इस मंदिर का निर्माण कंकरीट से नहीं बल्कि भाषा एवं संस्कृति निदेशालय के सहयोग व मार्गदर्शन मे॔ शिखर शैली मे या पत्थर व लकड़ी के संयोजन से किसी भी पुरानी शैली में ही हो।ताकि पुरातात्विक दृष्टिकोण से इस ऐतिहासिक मंदिर का जीवन कम से कम एक सहस्राब्दी वर्ष हो और शैली के माध्यम से यहां की उत्कृष्ट कला का संरक्षण स्वत: ही हो जाएगा।
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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा
