
—घरों में छठ पूजन की तैयारी अन्तिम दौर में,साफ —सफाई के साथ पूजन की सामग्री की खरीददारी
वाराणसी,24 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ की नगरी में लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ पूजन की सुगंध फिजाओं में बिखरने लगी है। पर्व की शुरूआत शनिवार को नहाय खाय के साथ होगी। इसको लेकर व्रती महिलाओं और उनके परिजनों,शुभचिंतकों में जबरदस्त उत्साह है। घरों में साफ—सफाई के साथ छठ माता के पूजन के लिए विविध पकवानों के बनाने की तैयारी हो रही है। वहीं,पूजन के लिए मौसमी फलो,बांस का सूप,दौरी,गन्ना व अन्य सामानों की खरीददारी हो रही है। बाजारों में भी सूप,दौरी,मौसमी फल,गन्ना आदि की अस्थाई दुकानें सज गई है। व्रती महिलाओं के परिजन गंगाघाटों ,वरूणा नदी किनारे,विभिन्न,तालाबों और सरोवरों के किनारे वेदी बनाकर जगह छेंक रहे हैं । घरों और बाजारों में छठ माता के पारम्परिक और नए गीत बज रहे है। छठ मईया के गीत बाट जे पूछेला बटोहिया, बहंगी केकरा के जाय…, कांच ही बांस के बंहगिया, बहंगी लचकत जाए… ने माहौल को भक्तिमय बना दिया है।
—छठ पूजा का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण
—डाला छठ पूजा अब बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड की सीमाओ से आगे बढ़ रहा है। लोक आस्था के महापर्व की सुगंध अब विदेशों में भी देखने को मिल रही है। सूर्य उपासना और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक यह पर्व पूरे देश में मन रहा हैं । इस पर्व का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। महापर्व में उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर लोग उनके प्रति सम्मान का भाव दिखाते है। साहित्यकार श्याम नारायण लाल,डॉ जयशंकर यादव ‘जय’ बताते है कि इस पर्व में भगवान सूर्य की आराधना की जाती है, जिन्हें ऊर्जा, शक्ति और जीवन का स्रोत माना जाता है। हिंदू धर्म में भगवान सूर्य को सभी देवी-देवताओं में प्रत्यक्ष देवता के रूप में पूजा जाता है। छठ पूजा में व्रतधारी महिलाएँ कठिन तप और संयम का पालन करती हैं। यह पर्व आत्मशुद्धि और आंतरिक शांति का प्रतीक माना जाता है, जिसमें व्यक्ति न केवल भगवान के प्रति अपनी आस्था प्रकट करता है, बल्कि स्वयं में भी एक नई ऊर्जा का संचार महसूस करता है।
डॉ जय बताते है कि छठी मैया को संतान की रक्षा और परिवार की सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है। मान्यता है कि इस पर्व में की गई आराधना से व्रतधारी को सुख-समृद्धि, संतति सुख और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस पर्व के दौरान व्रतधारी नदियों, तालाबों या किसी जलाशय में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि उगते और डूबते सूर्य की किरणें स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी होती हैं। व्रती तीन दिन तक उपवास करते हैं और जलाशयों में स्नान करते हैं, उनके शरीर में एक प्रकार की शुद्धि प्रक्रिया प्रारंभ होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह प्रक्रिया शरीर के विषैले तत्वों को दूर करने में सहायक होती है। छठ पूजा का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि यह पर्व हमें प्रकृति के प्रति जागरूक बनाता है। पर्व के दौरान जलाशयों, नदियों और अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों की पूजा की जाती है, जो प्रकृति के संरक्षण का प्रतीक है। छठ पूजा का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह समाज में एकता और सद्भावना का संदेश भी देता है। इस पर्व में हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी वर्ग या जाति का हो, एक समान भाव से सूर्य देव की पूजा करता है। यह समाज में एकजुटता का संदेश देता है।
—पर्व का उत्साह और भावनात्मक जुड़ाव
डॉ जय कहते है कि छठ पूजा का महत्व भावनात्मक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक है। देश-विदेश में बसे लोग इस पर्व के लिए अपने गाँव-घरों को लौटते हैं। यह पर्व परिवारों को आपस में जोड़ता है, रिश्तों में नई मिठास लाता है और समाज में मिल-जुलकर जीवन जीने का संदेश देता है। यह पर्व सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों का संगम प्रस्तुत करता है। इस पर्व के माध्यम से लोग न केवल धर्म का पालन करते हैं, बल्कि स्वस्थ जीवन, प्रकृति के प्रति सम्मान, और समाज में एकता के विचारों को भी अपनाते हैं।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी