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हिसार : विश्वविद्यालय में विभाजन की विभीषिका के तथ्यों को पढ़ाया जाना चाहिए : प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

विचार गोष्ठी का उद्घाटन करते मुख्यातिथि प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री, कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई एवं अन्य।
विचार गोष्ठी के उद्घाटन समारोह में मुख्यातिथि प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री को सम्मानित करते कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई।

भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने का संकल्प लें : प्रो. नरसी राम बिश्नोईविभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के उपलक्ष्य पर गुजविप्रौवि में हुई विचार गोष्ठीहिसार, 12 अगस्त (Udaipur Kiran) । हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा है कि 1947 में भारत का विभाजन दुनिया की सबसे दुखद व दर्दनाक घटनाओं में से एक है। विभाजन की विभीषिका के 78 साल बाद भी इस विभिषिका का सही से डाक्यूमेंटेशन नहीं हुआ है। भारत के विश्वविद्यालयों में विभाजन की विभिषिका से जुड़े हर तथ्य को पढ़ाया जाना चाहिए। प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री मंगलवार काे यहां के गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के गुरु जम्भेश्वर जी महाराज धार्मिक अध्ययन संस्थान व राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार तथा हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, पंचकूला के संयुक्त तत्वाधान में विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित विचार गोष्ठी को मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित कर रहे थे। ‘विभाजन विभिषिका के मानवीय पहलू’ विषय पर हुई इस विचार गोष्ठी की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने की। विश्वविद्यालय के चौधरी रणबीर सिंह सभागार में हुई इस विचार गोष्ठी में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली के मीडिया कंट्रोलर अनुराग पुनेठा मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि इंडिया फॉर चिल्ड्रन के निदेशक अनिल पांडेय थे। मुख्यातिथि प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार भारत का 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर लड़ा था लेकिन 1857 के बाद हिंदू व मुसलमानों को अलग करने की राजनीति शुरू हुई। इसके बावजूद आजादी के समय तक अधिकतर मुसलमान बंटवारे के खिलाफ थे। प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने सवाल किया कि भारत का हिंदू व मुसलमान दोनों ही बंटवारा नहीं चाहते थे, तो फिर ऐसा क्या कारण था कि भारत का विभाजन हुआ। यह वर्तमान में चिंतन का विषय है। इस विषय पर देशवासियों को अवश्य सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस त्रासदी में 10 से 20 लाख लोग मारे गए। उन्होंने सादत हसन मंटो की कहानी का उल्लेख करते हुए बंटवारे से जुड़ी त्रासदी तथा उसके मानवीय पहलुओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज हम हजारों साल पुरानी सभ्यताओं को तलाशने और उनका डाक्यूमेंटेशन करने पर लगे हैं, लेकिन भारत विभाजन की त्रासदी का सही से डाक्यूमेंटेशन नहीं कर पा रहे हैं।कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने अपने संबोधन में कहा कि 15 अगस्त 1947 को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का जन्म तो हुआ, लेकिन विश्व के इतिहास की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी भी हुई। लगभग 1.5 करोड़ लोग अपने ही वतन में शरणार्थी बनकर रह गए। यह विभाजन केवल भौगोलिक विभाजन नहीं था बल्कि दिलों और संस्कृतियों का विभाजन भी था। इस त्रासदी को याद करके आज भी रूह कांप जाती है। उन्होंने बताया कि बिश्नोई समाज के बहुत से लोग भी विभाजन के दौरान सीमा पार से आकर भारत में बसे थे। कौन कहां से आया, किसका परिवार अब कहां है, वास्तव में कितने लोग इस विभिषिका में मारे गए, इसका डाक्यूमेंटेशन जरूरी है। उन्होंने कहा कि हमें नफरत की दीवारों को तोड़कर प्रेम और सद्भाव से रहने तथा भारत की एकता व अखंडता को बनाए रखने का संकल्प लेना चाहिए।मुख्य वक्ता अनुराग पुनेठा ने कहा कि भारत की युवा पीढ़ी को विभाजन की विभिषिका के बारे में जानकारी होनी चाहिए। विस्थापितों में से शायद ही ऐसा कोई हो जिसने कोई न कोई अपना इस त्रासदी में ना खोया हो। इस भयानक विभिषिका के बावजूद विस्थापितों ने नए जीवन की शुरूआत की और शून्य से उठकर खुद को एक ब्रैंड बनाया। उन्होंने विभाजन के दौरान की कई भयावह कहानियों का जिक्र करते हुए बताया कि अचानक हंसते खेलते परिवार बर्बाद हो गए। मकान, दोस्त, रिश्ते सब छूट गए। हम इन कहानियों को कुछ साहित्यिक रचनाओं या फिर सिनेमा के जरिए थोड़ा बहुत जानते है, लेकिन पूर्ण रूप से घटनाओं का डाक्यूमेंटेशन नहीं हुआ। उन्होंने भी कहा कि स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को इस संबंध में तथ्यपरक जानकारियां पढ़ाई जानी चाहिएं।विशिष्ट अतिथि अनिल पांडेय ने कहा कि हमें इतिहास से जानना और सबक लेना चाहिए ताकि हम चुनौतियों का सामना कर सकें। ऐसे में विभाजन की विभिषिका की घटनाओं को भी जानना जरूरी है ताकि हम आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकें। गुरु जम्भेश्वर जी महाराज धार्मिक अध्ययन संस्थान के अध्यक्ष डा. किशनाराम बिश्नोई ने स्वागत संबोधन किया। उन्होंने कार्यक्रम के बारे में विस्तार से जानकारी दी। धन्यवाद सम्बोधन डा. रामस्वरूप ने किया। इस अवसर पर डा. सचिदानंद जोशी द्वारा निर्मित ‘बंटवारे की दास्तां’ नामक एक डॉक्यूमेंटरी तथा अनुराग पुनेठा द्वारा भारत पाकिस्तान विभाजन पर निर्मित एक लघु फिल्म भी दिखाई गई। मंच संचालन डा. गीतू धवन ने किया।

(Udaipur Kiran) / राजेश्वर

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