
जयपुर, 11 जुलाई (Udaipur Kiran) । जयपुर मेट्रो-द्वितीय की जिला व सेशन न्यायाधीश ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि माता-पिता के बीच में विवाह विच्छेद यानि तलाक होने के बाद भी संतानों के संबंध उनसे खत्म नहीं होते। कोर्ट ने मृतक की नाबालिग बेटी और मां को प्रथम श्रेणी का उत्तराधिकारी मानते हुए दोनों के उत्तराधिकारी प्रमाण पत्र जारी करने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 8 के तहत बेटी और माता को प्रथम श्रेणी का उत्तराधिकारी माना है। डीजे रीटा तेजपाल ने यह आदेश पहली पत्नी के जरिए दायर नाबालिग 14 साल की बेटी के उत्तराधिकार प्रार्थना पत्र पर दिया। वहीं कोर्ट ने दूसरी पत्नी काे यह कहते हुए उत्तराधिकारी नहीं माना कि बिना सात फेरे और वैवाहिक रस्मों के हुई शादी वैध नहीं मान सकते।
मामले से जुड़े अधिवक्ता सुधीर शुक्ला ने बताया कि प्रार्थिया की मां का 7 मई, 2006 को हिंदू रीति-रिवाजों के साथ रोशनलाल सैनी के साथ शादी हुई थी। इस दौरान प्रार्थिया का जन्म हुआ। वहीं 5 मार्च 2018 को उसके माता-पिता का विवाह-विच्छेद हो गया, वह अपनी मां के साथ रहती है। उसके पिता की बीएसएनएल की सेवा में रहते हुए 29 अप्रेल 2021 को मृत्यु हो गई। उसके पिता की मां ने भी पारिवारिक पेंशन, ग्रेच्युटी, इंश्योरेंस सहित अन्य सेवा परिलाभ के लिए खुद को वारिस बताते हुए राशि उसे देने का आग्रह किया है। इसलिए उसे विधिक वारिस मानकर मृतक पिता की संपत्ति सहित अन्य राशि दिलवाई जाए। जवाब में मृतक की मां ने कहा कि प्रार्थिया की माता ने विवाह विच्छेद के समय ही एक मुश्त भरण-पोषण राशि ले ली। अब उसका मृतक की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है। वहीं दूसरी पत्नी ने कहा कि उसकी शादी 21 अप्रेल 2021 को हुई थी। पति की शादी के 8 दिन बाद ही हुई मौत होने पर वह एकमात्र वारिस है। वह सभी सेवा परिलाभ की अधिकारी है। लेकिन कोर्ट के समक्ष पेश साक्ष्य से साबित हुआ कि दूसरी शादी के दौरान ना वैवाहिक रस्में हुई और ना ही फेरे। वहीं दूसरी पत्नी की दिमागी हालत भी सही नहीं थी। कोर्ट ने माना कि दूसरी शादी को हिन्दू रीति-रिवाज के तहत वैध नहीं मान सकते। उसका कोई विधिक उत्तराधिकार नहीं है।
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(Udaipur Kiran)
