
नई दिल्ली, 27 जुलाई (Udaipur Kiran) । भारतीय रेलवे में एक ऐतिहासिक तकनीकी उपलब्धि दर्ज करते हुए उत्तर रेलवे के जम्मू मंडल स्थित दीनानगर स्टेशन को देश का पहला डायरेक्ट ड्राइव इंटरलॉकिंग सिस्टम युक्त स्टेशन बना दिया गया है।
मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) विनोद कुमार ने बताया कि यह सिस्टम अत्याधुनिक के5डी क्योशन इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग तकनीक पर आधारित है और इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है। इसी श्रेणी में पश्चिम रेलवे का ताजपुर स्टेशन भी शामिल है। उन्होंने बताया कि बताया कि यह प्रणाली मौजूदा इंटरलॉकिंग सिस्टम का रिप्लेसमेंट नहीं, बल्कि सप्लीमेंट है। इसके तहत अब आउटडोर गियर को रिले की बजाय डायरेक्ट इलेक्ट्रॉनिक इंटरफेस से नियंत्रित किया जाएगा।
क्या है डायरेक्ट ड्राइव इंटरलॉकिंग सिस्टम?
यह तकनीक मौजूदा इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम का एक एडवांस वर्जन है, जिसमें आउटडोर सिग्नलिंग उपकरणों को सीधे इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (ईआई) से जोड़ा जाता है। अब सिग्नल, ट्रैक सर्किट और पॉइंट मशीनें सीधे इंटरलॉकिंग कार्ड से कनेक्ट होती हैं, जिससे मध्यवर्ती रिले हट जाते हैं। इससे सिस्टम की विश्वसनीयता और सुरक्षा में उल्लेखनीय सुधार होता है।
नई प्रणाली में क्या-क्या शामिल है?
वरिष्ठ अनुभाग अभियंता प्रशांत कुमार ने बताया कि दीनानगर स्टेशन पर आधुनिक सिग्नल और टेलीकम्युनिकेशन परिसंपत्तियां लगाई गई हैं। दीनानगर रेलवे स्टेशन को 9 दिसंबर 2024 को आधुनिक के5डी डायरेक्ट ड्राइव क्योशन मेक इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम से लैस किया गया। यह उन्नयन पठानकोट-अमृतसर रूट पर कुल 31 रूटों के संचालन को सुरक्षित और कुशल बनाएगा। नए इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम के तहत स्टेशन पर कुल 21 ट्रैक, 04 पॉइंट, 10 मुख्य सिग्नल, 10 शंट सिग्नल, 01 लेवल क्रॉसिंग गेट, 15 एलसी गेट रिले, और कुल 27 इनडोर रिले स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा, आउटडोर में 60 रिले तथा 04 लाइन इलेक्ट्रॉनिक यूनिट लगाए गए हैं।
उन्होंने कहा कि इस के5डी सिस्टम की सबसे बड़ी विशेषता इसकी कम जटिलता, न्यूनतम रखरखाव और कम बिजली खपत है। साथ ही, सभी सिग्नल और पॉइंट अब लाइन इलेक्ट्रॉनिक यूनिट के माध्यम से ओएफसी द्वारा बिट डेटा में नियंत्रित किए जाते हैं। पुराने रिले आधारित सिस्टम की तुलना में इस प्रणाली में रखरखाव आसान है और विफलताएं न्यूनतम पाई जाती हैं। यह प्रणाली यार्ड रीमॉडलिंग में भी सुविधाजनक है और सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखते हुए खराबी की स्थिति में भी सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करती है।
रेलवे इंजीनियरों के अनुसार इस सिस्टम के लागू होने से कई फायदे होंगे। तांबे की केबल और रिले की संख्या में कमी, जिससे लागत और देखभाल में बचत। ऊर्जा की खपत कम, और रखरखाव आसान। सभी नियंत्रण उपकरणों की वास्तविक समय निगरानी संभव। प्रणाली फेल-सेफ सिद्धांतों पर आधारित है, जिससे किसी भी त्रुटि की स्थिति में भी सुरक्षित संचालन सुनिश्चित होता है। ट्रेनों की समयबद्धता (पंक्चुअलिटी) में सुधार होगा और अधिक ट्रेनों का संचालन संभव होगा। नए सिस्टम से दीर्घकालीन लाभ होंगे जैसे कम बिजली खपत, न्यूनतम रिले उपयोग, सटीक नियंत्रण और वास्तविक समय की निगरानी। लेकिन तब तक, तकनीकी स्टाफ को स्किल अपग्रेड करना ही इस बदलाव की सफलता की कुंजी होगा।
कुछ शुरुआती चुनौतियां भी रहीं:
हालांकि, यह प्रणाली आधुनिक है, लेकिन पारंपरिक रिले सिस्टम के अभ्यस्त तकनीकी कर्मचारियों को शुरुआती कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, रिमोट डाइग्नोस्टिक सपोर्ट के बावजूद, उपयुक्त कंसोल टूल्स के बिना ट्रबलशूटिंग थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
भविष्य की दिशा:
रेलवे प्रवक्ता के अनुसार, दीनानगर और ताजपुर स्टेशनों पर इस प्रणाली की सफल तैनाती के बाद इसे और भी स्टेशनों पर लागू करने की योजना है। यह तकनीक भविष्य के भारतीय रेलवे की नींव रखेगी, जो तेज, सुरक्षित और स्मार्ट संचालन की ओर अग्रसर है।
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(Udaipur Kiran) / सुशील कुमार
