

कानपुर, 15 अगस्त (Udaipur Kiran) । आजादी की दीवानगी और ऐतिहासिक धरोहरों से घिरे कानपुर शहर का देश की आजादी में अहम रोल रहा है। यह शहर अंग्रेजों के लिए आर्थिक रूप से काफी मददगार था। वहीं मेरठ से सुलगी आग कानपुर तक जा पहुंची। इस क्रांति का आगाज 1857 में हुआ। तो वहीं हुकूमत ने कुछ ऐसे भी जख्म दिए हैं। जो शायद कभी न भर पाए। जी हां आज हम बात करने जा रहे हैं शहर के बीचो-बीच बने नानाराव पार्क में मौजूद बरगद का पेड़ जिसे अब बूढा बरगद के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजो द्वारा पेड़ की डालों पर 133 क्रांतिकारियों को मारकर लटका दिया गया था।
यह बात उन दिनों की है। जब अंग्रेजों ने हमारे देश को पूरी तरह से अपना गुलाम बना लिया था। अंग्रेजी हुकूमत की दहशत लोगों में इस कदर थी कि लोग अंग्रेजों से आंख से आंख मिलाने में भी घबराते थे। अंग्रेजो के इन्ही तानाशाही रवैयों से परेशान होकर इससे छुटकारा पाने के लिए देश के कुछ जांबाज क्रांतिकारियों ने भी अपने हाथों में हथियार उठा लिए और अंग्रेजो को देश से बाहर खदेड़ने की ठान ली। इस बीच कई बार इन क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच खूनी संघर्ष भी हुआ। इसी खूनी संघर्ष का जीता जागता मिसाल है बूढ़ा बरगद जहां 133 क्रांतिकारियों फांसी पर लटका दिया गया था। जो आज भी उस खूनी दिन का गवाह है। हालांकि वर्तमान में यहां पर बरगद का पेड़ तो नहीं बचा है लेकिन अब जिला प्रशासन ने यहां शिलापट बना दी है।
इतिहास के जानकार डॉ रजत कुमार बताते हैं कि इस कहानी की शुरुआत होती है, मई 1857 से जब कुछ अंग्रेज अधिकारी अपने बीबी बच्चों के साथ दर्जनों नाव के जरिये इलाहाबाद (प्रयागराज) जा रहे थे कि तभी एक अंग्रेज अधिकारी को कुछ गलतफहमी हुई और उसने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, इस गोलीकांड में कई क्रांतिकारी शिकार हो गए। जिसके बाद गुस्साए क्रांतिकारियों ने अंग्रेजो को मौत के घाट उतार दिया लेकिन उनके बीबी बच्चों को सही सलामत नानाराव पार्क में बने बीबीघर मे सुरक्षित पहुँचवा दिया था। जिसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हुसैनी बेगम को सौंपी गई। नानाराव पार्क के अंदर ही बीबी घर बना हुआ था, जिसमे अंग्रेजो के अधिकारी आकर ठहरा करते थे, ऐसा बताया जाता है कि इसमें किसी भी भारतीय को जाने की अनुमति नही होती थी।
उधर दूसरी तरफ इस घटना की आंच इंग्लैंड तक पहुँची। जिससे बौखलाए अंग्रेजो ने भारत के कई शहरों पर हमला बोल दिया और उनके बीच जो भी आया अंग्रेज उसे मौत के घाट उतारते चले गए। यही नही सैकड़ो गांवों में आग तक लगा दी और अंत मे अंग्रेजो द्वारा चार जून 1857 को 133 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर इसी नानाराव पार्क में मौजूद बरगद की टहनियों में लटकाकर सभी को फांसी दे दी थी। इस घटना को इतने साल बीत जाने के बाद आज भी ये बरगद का पेड़ उस समय की क्रूरता को दर्शाता है। हालांकि अब यहां वो असली पेड़ नहीं है लेकिन शहीद स्थल की शिलापट जरूर है। जिसपर बूढ़ा बरगद ने उस खूनी दिन की क्रूरता को दर्शाया है।
(Udaipur Kiran) / रोहित कश्यप
