
कोलकाता, 22 सितम्बर (Udaipur Kiran News) ।
हुगली जिले के गोघाट प्रखंड के गोयालसाड़ा गांव स्थित चौधुरी परिवार की दुर्गापूजा परंपरा बड़ी अद्भुत और अविस्मरणीय है आज भी पूरे आस्था और श्रद्धा के साथ शास्त्रीय पद्धति से निभाई जा रही है। लगभग 300 वर्ष पूर्व, वर्ष 1734 में तत्कालीन जमींदार जगन्नाथ चौधुरी ने इस पूजा की शुरुआत की थी।
परिवार के वर्तमान वंशज शंकरप्रसाद चौधुरी बताते हैं कि बर्दवान रजवाड़े के समय से इस परिवार का जमींदारी शासन प्रारंभ हुआ था। उस दौर में जंगल और जलीयभूमि से घिरे इस क्षेत्र में डाकुओं का आतंक रहता था। बर्दवान राजा की सख्ती के बाद डाकुओं ने अपनी आराध्या देवी ‘जयदुर्गा’ को जमींदार जगन्नाथ चौधुरी के हवाले कर दिया। इसके बाद जमींदार ने देवी को सादर अपनाकर कचहरी घर में स्थापित किया।
वे कहते हैं मां की कृपा से न केवल जमींदारी का वैभव बढ़ा बल्कि व्यापार और संपन्नता भी आई। आज भी पुराने कचहरी घर के अवशेष मौजूद हैं। बाद में माता को नए कचहरी घर में प्रतिष्ठित किया गया।
इस दुर्गापूजा की विशेषता है कि प्रतिपदा को घट स्थापना के बाद से ही प्रतिदिन माता दुर्गा और मधुसूदन (नारायण) के नाम का जप आरंभ होता है। चंडीपाठ के स्थान पर यहां पूजा के दिनों में दोनों देवताओं का एक लाख बार जप किया जाता है। एक कुल पुरोहित माता दुर्गा का और दूसरा ब्राह्मण मधुसूदन का जप करते हैं। यह क्रम दशमी तक चलता है।
परिवार की बहू मनु चौधुरी बताती हैं, “करीब 300 वर्षों से यह परंपरा उसी रीतिनिष्ठा के साथ निभाई जा रही है। पहले अन्दरमहल से ही महिलाओं को पूजा करनी पड़ती थी। आज भी कुल पुरोहित ही मां का बरण और विसर्जन करते हैं। घर की महिलाओं को बरण का अधिकार नहीं है।”
आज भी इस प्राचीन परंपरा को निभाते हुए चौधुरी परिवार के सदस्य मां दुर्गा और मधुसूदन की आराधना करते हैं। पूजा देखने दूर–दूर से लोग गोयालसाड़ा पहुंचते हैं।
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(Udaipur Kiran) / अभिमन्यु गुप्ता
