Uttar Pradesh

मथुरा के सुरीर में आज भी निभाई जा रही 200 साल पुरानी परम्परा, नहीं रहती सुहागिनें करवाचौथ व्रत

सुरीर की महिलाएं

मथुरा, 09 अक्टूबर(Udaipur Kiran News) । नई बहुओं के लिए करवाचौथ और अहोई अष्टमी व्रत आज भी सुरीर क्षेत्र में श्राप बना हुआ है, यहां लगभग 200 वर्ष पुरानी परम्परा का निर्वहन किया जाता है। जिसके चलते यहां सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत न रहकर सिर्फ सती माता को पूजती हैं। सुरीर की महिलाएं अपने पतियों की लम्बी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत नहीं रखतीं।

विदित रहे कि, यह श्राप लगभग 200 साल पुराना माना जाता है। बताया जाता है कि नौहझील के रामनगला गांव का एक ब्राह्मण युवक अपनी पत्नी को गौना कराकर सुरीर के रास्ते भैंसा बुग्गी से ले जा रहा था। तभी कुछ ठाकुरों ने विवाद खड़ा कर उसकी हत्या कर दी। पति की मृत्यु देखकर पत्नी ने वहीं सती होकर मोहल्ले के लोगों को श्राप दिया। कहा जाता है कि इस घटना के बाद कई नवविवाहिताएं असमय विधवा हो गईं और परिवारों में जवान मौतों का सिलसिला शुरू हो गया। आज भी परम्परा का पालन इस श्राप से भयभीत होकर लोगों ने तब से करवाचौथ और अहोई अष्टमी न मनाने का संकल्प लिया। सुरीर की महिलाएं पूरा सोलह श्रृंगार भी नहीं करतीं। इसके अतिरिक्त, रामनगला गांव के लोग आज भी सुरीर में खाना-पीना नहीं करते और सती माता की इस मान्यता का पालन करते हैं।

विवाहिता रीता सिंह ने बताया कि शादी के बाद उनका पहला करवाचौथ था, लेकिन ससुराल में यह पर्व न मनाने की परम्परा के कारण उन्हें व्रत रखने की इच्छा छोड़नी पड़ी। सपना नामक महिला ने कहा कि आठ साल पहले विवाह के बाद पहला करवाचौथ न मना पाने की कसक उन्हें आज भी महसूस होती है। मोहल्ले की सुनहरी देवी और अन्य महिलाओं का कहना है कि वे व्रतों से अधिक अपने परिवार की सलामती और ईश्वर पर भरोसा करती हैं। रामवती नामक महिला ने बताया कि उनका मानना है कि अब सती माता श्राप नहीं बल्कि आशीर्वाद देती हैं, लेकिन पुरानी परम्परा को तोड़ने की हिम्मत किसी में नहीं है।

(Udaipur Kiran) / महेश कुमार

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