
काजरी को मिले 40 लाख से अधिक पौधों के ऑर्डर, बंजर जमीन में भी होगा उत्पादन
जोधपुर, 12 सितम्बर (Udaipur Kiran) । सूखे की कमी और बारिश के असंतुलन से जूझ रहे राजस्थान के किसानों के लिए कैक्टस का पौधा वरदान साबित हो सकता है। प्रदेश में केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) की ओर से इस पौधे को यहां के वातावरण में उगाया गया। जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। वर्तमान में प्रदेश सरकार ने एक लाख तो झारखंड सरकार ने काजरी से 25 लाख पौधों की डिमांड की है।
इसको लेकर काजरी के वैज्ञानिक रामनारायण कुमावत ने जानकारी देते हुए बताया कि ये कांटे रहित थोर है। ये मोरक्को, मेक्सिको से आया हुआ है। काजरी में करीब तीस वर्षों से इस पर अनुसंधान किया जा रहा है। वर्ष 2019 में इसे यहां पर लगाया गया था। जिसका उद्देश्य जहां सूखाग्रस्त एरिया है या जमीन कम उपजा है उन जगहों पर हरे चारे की पूर्ति करने के उद्देश्य से इसे लगाया गया था। कैक्टस जिसे 1 हैक्टेयर यानी करीब 6 बीघा में उगाकर किसान करीब 2 हजार किलो तक चारा ले सकता है। इसके एक पत्ते की कीमत दस से 12 रूपए होती है। काजरी के अंदर वर्तमान में दो प्रकार के कैक्टस है। एक में पत्ते बड़े होते हैं वहीं दूसरे में पत्ते छोटे होते हैं। इन कैक्टस को कई बड़ी होटलों में सलाद के तौर पर भी परोसा जाता है।
40 हजार का उत्पादन
इस पौधे की पत्तियों से वीगन लेदर भी बनाया जाता है। जिससे कई तरह के फैशनेबल उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं। इसके अलावा कास्मेटिक आइटम बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। वर्तमान में काजरी में करीब 30 से 40 हजार कैक्टस के पत्तों का उत्पादन किया जा रहा है। एक हैक्टेयर से काजरी में 1800 से 2 हजार किलो चारे का उत्पादन हो रहा है। इस साल जयपुर के सायल वाटर कंजर्वेशन से 15 लाख पौधों की डिमांड आई है। वहीं झारखंड सरकार से 25 लाख की डिमांड आई है। हाल ही में मिर्जापुर यूपी में दस हजार पौधे यहां से भेजे गए। पशुपालन के लिए इसे हरे चारे के तौर पर सीधे ही काम में लिया जा सकता है। इसमें हरे चारे की कुल मात्रा में यह तीस प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। पशुओं को हम गट्टा या बांटा देते हैं उसकी जगह इसे काम में ले सकते हैं।
90 प्रतिशत तक पानी
पोषण की बात की जाए तो इसमें करीब 90 प्रतिशत तक पानी होता है। प्रोटीन करीब 7 से 8 प्रतिशत होता है। इसमें कैल्सियम और फास्फोरस होता है जो पशुओं के लिए भी फायदेमंद है। इसको लेकर काजरी में थारपारकर गाय पर भी रिसर्च किया जा चुका है। इसे खिलाकर पशुओं में पानी पीने की मात्रा को 30 से 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। इसके लगाने का तरीका बेहद ही आसान है। किसान इसे अपने खेत में जहां पर मुरड़ होता है या पानी खारा है वहां की जमीन इसके लिए उपयुक्त है। अप्रेल, मई जून में इसे लगाने का सही समय है। इस दौरान एक माह में दो बार पानी देना होता है। दो गुणा 1 मीटर के विन्यास में करीब 800 पौधे लगते हैं। हालांकि इसके बीच में अन्य फसलें भी लगा सकते हैं। इसके लिए काजरी ने प्रत्येक पौधे के बीच तीन मीटर का गैप दिया है। जिससे बारिश के समय में अन्य फसल बोई जा सकें। जिस जगह पर पानी ज्यादा इक्कटा होता है वहां इसे नहीं लगाया जाना चाहिए।
(Udaipur Kiran) / सतीश
