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जर्जर मकान को गिराने का किराएदार नहीं कर सकता विरोधः हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकाेर्ट

–जीवन की सुरक्षा निजी अधिकारों से ज्यादा महत्वपूर्ण

प्रयागराज, 11 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि किरायेदार जर्जर इमारत को गिराने का विरोध नहीं कर सकते। जीवन की सुरक्षा उत्तर प्रदेश शहरी परिसर किरायेदारी विनियमन अधिनियम, 2021 के तहत व्यक्तियों के व्यक्तिगत अधिकारों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने भवन गिराने की अनुमति दे दी है।

न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने कहा, किराएदार भवन के शीघ्र विध्वंस पर आपत्ति करने के हकदार नहीं होंगे। खासकर तब जब अधिकारियों ने उक्त परिसर का निरीक्षण किया हो और इसे ध्वस्त करना अनिवार्य माना हो। भवन के जीर्ण-शीर्ण होने और व्यक्तियों के जीवन को खतरा पैदा करने के कारण व्यक्तियों के जीवन की सुरक्षा के लिए अधिनियम, 1959 के तहत लागू योजना को व्यक्तिगत आवेदकों के किरायेदारी अधिकारों की सुरक्षा पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

अलीगढ़ निवासी अशोक कुमार गुप्ता की याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने यह टिप्पणियां की। याची ने जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पुलिस बल उपलब्ध कराने के लिए उचित निर्देश जारी करने की प्रार्थना की थी। अलीगढ़ नगर निगम ने उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1959 की धारा 331(1) के तहत पहली अक्टूबर 2024 को नोटिस जारी कर सुदामा पुरी, रामघाट रोड, स्थित उसकी उस इमारत को ध्वस्त करवाने का आदेश दिया था जो ’रमा देवी भवन’ के नाम से प्रसिद्ध है।

याची की तरफ से कहा गया कि इमारत लगभग 100 साल पुरानी और जीर्ण-शीर्ण है। रखरखाव और मरम्मत संभव नहीं है। नगर निगम ने भी निरीक्षण के बाद पाया था कि इमारत को गिराना ज़रूरी है। हालांकि किरायेदारों के विरोध के कारण कोई भी तोड़-फोड़ की कार्रवाई नहीं हो सकी।

नगर निगम, अलीगढ़ के नगर आयुक्त ने न्यायालय के समक्ष अपने व्यक्तिगत हलफनामे में कहा कि आगामी मानसून के मौसम में जानमाल के नुकसान की आशंका है क्योंकि इमारत बेहद जर्जर अवस्था में है। न्यायालय ने कहा कि किरायेदारी अधिनियम की धारा 21 की उपधारा (2) के तहत, मकान मालिक, परिसर के किसी भी हिस्से की मरम्मत,पुनर्निर्माण, परिवर्धन, परिवर्तन या विध्वंस के मामले में, जो परिसर खाली किए बिना नहीं किया जा सकता, किरायेदारों को बेदखल करने के लिए किराया प्राधिकरण के समक्ष आवेदन कर सकता है। यह मानते हुए कि किरायेदारों के जीवन को खतरा उनके किरायेदारी अधिकारों से कहीं ज़्यादा है। न्यायालय ने नगर निगम के अधिकारियों को कानून के अनुसार जीर्ण-शीर्ण किरायेदार परिसर को ध्वस्त करने और किरायेदारों को अपना सामान हटाने का उचित अवसर देने का निर्देश दिया।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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