श्रीनगर, 16 अगस्त (Udaipur Kiran) । पर्यावरण समिति के अध्यक्ष और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) एम वाई तारिगामी ने आज जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चिसोती में हाल ही में हुए बादल फटने पर गंभीर चिंता व्यक्त की। इस दुखद घटना में लगभग 60 लोगों की जान चली गई है, जबकि कई लोग लापता हैं और अपने पीछे तबाही का मंज़र छोड़ गए हैं। कुलगाम के विधायक तारिगामी ने जवाबदेही और जलवायु न्याय सुनिश्चित करने सहित कई माँगें रखी हैं।
जारी एक बयान में तारिगामी ने कहा कि घातक बादल फटने की घटना ने एक बार फिर जम्मू-कश्मीर के हिमालयी क्षेत्र की चरम मौसम की घटनाओं जैसे अचानक बाढ़, भूस्खलन, हिमस्खलन आदि के प्रति संवेदनशीलता को उजागर कर दिया है। यह दुखद घटना हिमालय पर्वतमाला के नाजुक पर्यावरण और उसके पारिस्थितिक संतुलन के लिए जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न अस्तित्वगत खतरे को रेखांकित करती है।
इस क्षेत्र का अधिकांश भाग धार्मिक स्थलों का निवास स्थान है जहाँ हर साल हजारों भक्त/यात्री आते हैं इसलिए मानव जीवन की सुरक्षा के लिए उपाय किए जाने की आवश्यकता है। क्या पर्यावरण विभाग और अन्य संगठनों को शामिल करके पूरे क्षेत्र का कोई सर्वेक्षण और मूल्यांकन किया गया है और बादल फटने की रोकथाम और लोगों की सुरक्षा के लिए सुझाव दिए गए हैं।
सांप्रदायिक सद्भाव को आशा की किरण बताते हुए उन्होंने स्वयंसेवकों, युवाओं और बीस्थानीय समुदायों के वीरतापूर्ण प्रयासों की सराहना की, जिन्होंने बचाव और राहत कार्यों में अनुकरणीय एकजुटता और सांप्रदायिक एकता का परिचय दिया।
उन्होंने इस दुखद घटना की तत्काल और समयबद्ध जाँच की माँग की। जम्मू क्षेत्र के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में भारी बारिश, बादल फटने और अचानक बाढ़ आने की मौसम विभाग की पूर्व चेतावनियों के बावजूद एहतियाती कदम क्यों नहीं उठाए गए। उन्होंने आगे कहा कि इन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ क्यों किया गया और निवारक उपाय क्यों नहीं किए गए? यह आपराधिक लापरवाही है।
उन्होंने कहा कि नौकरशाही की जड़ता और उदासीनता का हिसाब दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी आपदाएँ केवल प्राकृतिक नहीं हैं बल्कि संसाधनों के अंधाधुंध दोहन, वनों की कटाई, पत्थर तोड़ने वाली मशीनों के बेरोकटोक और अनधिकृत उपयोग और नवउदारवादी प्रतिमान के तहत भूमि के वस्तुकरण से और भी बढ़ जाती हैं।
उन्होंने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर के मजदूर वर्ग और हाशिए पर पड़े लोग लाभ-प्रेरित पर्यावरणीय क्षरण की वेदी पर बलि का बकरा नहीं बन सकते।
(Udaipur Kiran) / रमेश गुप्ता
