Uttar Pradesh

मीरजापुर में बढ़ी स्वदेशी चेतना , बाजार में छाए मिट्टी और गोबर से बने इको-फ्रेंडली दीए

गोबर और मिट्टी से बने दीए।

मीरजापुर, 14 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । स्वदेशी का नारा अब केवल शहरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि छोटे कस्बों और गांवों तक भी गूंज उठा है। लोगों में स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन और खरीदारी को लेकर नई चेतना पैदा हुई है। इसका असर मीरजापुर में मिट्टी के दीयों के उत्पादन में स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है।

जनपद में लगभग 10-15 हजार परिवार पारंपरिक रूप से मिट्टी के दीये बनाते हैं। ये दीये छोटे-बड़े बाजारों तक पहुंचते हैं और अब मीरजापुर का दीयों का कारोबार लगभग 20 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। विशेष रूप से चुनार में यह उद्योग बड़े पैमाने पर विकसित हो रहा है।

भावा, राजगढ़ ब्लॉक, भवानीपुर और गोरथरा जैसे गांवों में कुंभकार मिट्टी में गोबर मिलाकर इको-फ्रेंडली दीपक बनाते हैं। इन दीपकों में 70 प्रतिशत मिट्टी और 30 प्रतिशत गोबर होता है। भावा गांव में पुरुष और महिलाएं मिलकर इन्हें तैयार करते हैं। सरकार ने इनके लिए मिट्टी निकालने के लिए विशेष स्थान भी छोड़ा है।

इको-फ्रेंडली दीपक बनाने में देसी गाय और बैलों का गोबर इस्तेमाल होता है, जो स्थानीय ग्रामीणों के पालन-पोषण से प्राप्त होता है। भावा गांव के कुंभकार रामपति प्रजापति, हुन्नर प्रजापति, शिवकुमार, नंदलाल, भोला सप्तमी और वंदना प्रजापति ने बताया कि इन दीपकों को बनाने में काफी मेहनत लगती है। इन्हें छाया में सुखाना पड़ता है और केवल विशेष मांग पर ही तैयार किया जाता है।

स्वदेशी चेतना के इस आंदोलन ने न केवल ग्रामीणों को रोजगार दिया है, बल्कि परंपरा और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी फैलाया है। इस पहल से मीरजापुर के मिट्टी के दीयों का बाजार हर साल नई ऊंचाइयों को छू रहा है और इको-फ्रेंडली उत्पादों की ओर लोगों की बढ़ती रुचि को दर्शा रहा है।

(Udaipur Kiran) / गिरजा शंकर मिश्रा

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