
नई दिल्ली, 24 सितंबर (Udaipur Kiran News) । उच्चतम न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश में बारिश और फ्लैश फ्लड से हुई तबाही पर गहरी चिंता जताते हुए सख्त रुख अपनाया है। जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हिमाचल प्रदेश समेत पूरा हिमालयी क्षेत्र गंभीर अस्तित्व संकट का सामना कर रहा है, क्योंकि अनियंत्रित विकास गतिविधियों ने प्राकृतिक आपदाओं को और बढ़ा दिया है। कोर्ट ने राज्य सरकार से पर्वारणीय तबाही और अंधाधुंध विकास कार्यों पर 28 अक्टूबर तक विस्तृत जवाब तलब किया है।
उच्चतम न्यायालय ने पिछले 20 वर्षों में गैर-वन उपयोग के लिए जमीनों का लैंड-यूज में बदले जाने के संदर्भ में विस्तृत ब्योरा तलब किया है। कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के पेड़ों की प्रजातियों का पूरा आंकड़ा और बड़े पैमाने पर पेड़ काटने की अनुमति देने से जुड़ी जानकारी भी दाखिल करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा कि भूस्खलन, इमारतों का ढहना और सड़कों का धंसना प्रकृति की गलती नहीं बल्कि मानवीय गतिविधियों का परिणाम है। हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स, फोर-लेन हाइवे, वनों की कटाई और बहुमंजिला इमारतों के निर्माण जैसी गतिविधियों, प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रही हैं। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या आपके पास जलवायु परिवर्तन की कोई नीति है और अगर है तो उसकी प्रति पेश करें। आपने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर कोई अध्ययन किया है कि नहीं ये भी बताएं।
(Udaipur Kiran) /संजय
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(Udaipur Kiran) / अमरेश द्विवेदी
