
बोली— हमें औरंगज़ेब की लकीर छोटी करनी है तो दाराशिकोह की लकीर लंबी करनी होगी
वाराणसी, 6 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी (काशी) में सोमवार को सनातनी मुसलमान परंपरा का शंखनाद किया गया। काशी के संत महात्माओं व सिद्ध पीठों के आशीर्वाद से राष्ट्र जागरण अभियान की राष्ट्रीय संयोजिका सुबूही ख़ान जज़्बा-ए-हिन्द नाम से उत्तर प्रदेश के सभी ज़िलों में यात्रा कर देश को समर्पित मुसलमानों को एकजुट करने का काम करेगी। उनके नेतृत्व में यह अभियान पूरे प्रदेश में चलेगा।
गोलघर स्थित पराड़कर स्मृति भवन में मीडिया से बात करते हुए सुबूही खान ने उत्तर प्रदेश की पावन भूमि काशी से सनातनी मुसलमान परंपरा का शंखनाद की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि औरंगज़ेब हम पर इसलिए हावी हुए क्योंकि हम दाराशिकोह को सम्मान नहीं दे पाये। अगर हमें औरंगज़ेब की लकीर छोटी करनी है तो दाराशिकोह की लकीर लंबी करनी होगी।
सुबूही ख़ान का कहना है कि हमें धर्म, पंथ और संस्कृति का अर्थ जानना होगा। मैं धर्म से सनातनी हूं, पंथ से मुसलमान हूं और संस्कृति से हिंदू हूं। यह दर्शन भारत के हर मुसलमान को जानना होगा। धर्म का अर्थ होता है कर्तव्यपरायणता यानि परफॉरमेंस ऑफ़ ड्यूटी। जिस परिस्थिति में जो करना चाहिए वो धर्म है।
सुबूही ने कहा कि पंथ या मज़हब हमारी पूजा पद्दति है। उस निराकार, निर्गुण, निर्विचार परमात्मा तक पहुंचने के जो भी रास्ते हैं वो पंथ या मज़हब है। किसी भी मंज़िल तक पहुंचने का कोई एक रास्ता नहीं हो सकता। अनेकों रास्ते हैं और सभी मंज़िल तक ले जाते हैं। अगर इंडोनेशिया आज भी सनातनी मुसलमान परंपरा पर चल कर एक सफल राष्ट्र बन सकता है तो हम क्यों नहीं? संस्कृति की सबसे सरल परिभाषा मुझे अपने गुरु गोविंदाचार्य जी से मिली। किसी भी भूखंड की जलवायु के अनुसार वहाँ की भाषा, भूषा, भोजन, भवन, भेषज और भजन वहाँ की संस्कृति होती है। अगर हम भारत में पैदा हुए हैं तो हम भारत जैसे दिखने चाहियें। यही कारण है कि पूरी दुनिया में इस्लाम तलवार की नोंक पर फैल रहा था और भारत की भक्ति परंपरा में लीन होकर वो नाचने गाने लगा।
सुबूही ने कहा कि कभी इस्लामिक सूफी शक्ल में, कभी सनातनी मुसलमान रहीम और रसखान की शक्ल में। अगर हम शब्दों के अर्थ और गहरायी समझ जायेंगे तो हमे समझ आ जाएगा कि हमे सनातनी और हिंदू होने के लिए इस्लाम छोड़ने की ज़रूरत नहीं है। हम जहाँ हैं वहीं रहकर आध्यात्मिक ऊँचाई को हासिल कर सकते हैं। रहीम, रसख़ान, दाराशिकोह, कबीर, जायसी आदि अनेकों ऐसे मुसलमान हैं जिन्होंने इस दर्शन को जिया है। हमे धर्म, पंथ और संस्कृति का अर्थ जानना होगा।
अभियान की संस्थापिका व राष्ट्रीय संयोजिका सुबूही ख़ान का कहना है कि हम राष्ट्र के सामने भविष्य में आने वाली समस्याओं पर चिंतन कर रहे हैं और समाधान ढूंढ रहे हैं। आज देश भाषा, जाति, क्षेत्र व संप्रदाय में बंट गया है। देश की नदियां सूख रही हैं, कहीं बाढ़ आ रही है, हिमालय धंस रहा है, मिट्टी की उर्वरता ख़त्म हो रही है, विदेशी बीजों के बाज़ार में देसी बीज ढूंढने से नहीं मिलता है, केमिकल फर्टिलाइज़र्स ने धरती में ज़हर घोल दिया है। देश की प्रकृति को बचाने की इस लड़ाई में देश के हर एक नागरिक को खड़ा होना पड़ेगा। हमने पाया कि देश के मुसलमानों का एक बड़ा तबक़ा पक्ष विपक्ष की राजनीति में उलझ गया है। हम इस यात्रा में उन सनातनियों को ढूंढने निकले हैं जो अपने देश व उसकी मिट्टी को बचाने की इस लड़ाई में हमारा साथ देंगे। वार्ता में डॉ. लियाक़त अली, फ़रमान अली, सेजल त्यागी, रोहित गहलोत, चित्रपाल भी मौजूद रहे।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
