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सृजनी बनर्जी के सितार वादन ने किया मंत्र मुग्ध, पद्मश्री उल्हास कशालकर ने गायन से घोली मिठास

सृजनी बनर्जी के सितार वादन ने किया मंत्र मुग्ध, पद्मश्री उल्हास कशालकर ने गायन से घोली मिठास

जयपुर, 27 जुलाई (Udaipur Kiran) । रोटरी क्लब एवं लायंस क्ल्ब की ओर से आईटीसी संगीत रिसर्च एकेडमी, कोलकाता के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय ‘शास्त्रीय संगीत संध्या’ का रविवार को समापन हुआ। शास्त्रीय संगीत के सौंदर्य से सराबोर करने वाले कार्यक्रम में तीन दिन शास्त्रीय गायन, संतूर वादन, सितार वादन की प्रस्तुतियां हुई। अंतिम दिन दो भाग में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जवाहर कला केन्द्र (जेकेके) के कृष्णायन सभागार में सृजनी बनर्जी ने सितार वादन की प्रस्तु​ति दी। वहीं सप्त​शक्ति ऑडिटोरियम में पद्मश्री उल्हास कशालकर ने शास्त्रीय गायन से मिठास घोली, तबले पर उनके साथ पद्मश्री सुरेश तलवलकर ने संगत की। इस दौरान रोटरी क्लब पिंक सिटी के अध्यक्ष आनंद अग्रवाल, मीता माथुर, श्याम सुंदर गुप्ता, लायंस क्लब के उपाध्यक्ष आकाश गुप्ता, लायंस क्लब के सचिव महेंद्र बैराठी सहित अन्य गणमान्य व कलाप्रेमी मौजूद रहे।

जेकेके के कृष्णायन सभागार में पश्चिम बंगाल की युवा कलाकार सृजनी बनर्जी ने सितार की मधुर धुनों से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया। उन्होंने राग यमन से प्रस्तुति की शुरुआत की। विलंबित तीन ताल और मध्य लय में द्रुत तीन ताल का वादन उन्होंने किया। इसके बाद राग देश को उन्होंने अपनी प्रस्तुति का आधार बनाया। अपनी प्रस्तुति में पश्चिम बंगाल के लोक संगीत के सौंदर्य से भी उन्होंने साक्षात्कार करवाया। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक और लेखक सत्यजीत रे की प्रमुख धुनों को बजाकर उन्होंने समां बांधा। उनके साथ तबले पर अशोक मुखर्जी ने संगत की।

उधर सप्तशक्ति ऑडिटोरियम पद्मश्री उल्हास कशालकर की शास्त्रीय संगीत के मनोरम प्रस्तुति से गूंज उठा। कारगिल विजय दिवस के जश्न के रूप में सेना के जवानों को यह कार्यक्रम समर्पित रहा। उल्हास कशालकर ने राग रागेश्री से प्रस्तुति की शुरुआत की। उन्होंने विलंबित ख्याल और छोटा ख्याल पेश किया। राग मल्हार में में बंदिश ‘बोले रे पपिहा’ गाकर उन्होंने वर्षा ऋतु के सौंदर्य का बखान किया। ठुमरी ‘कोयलिया कूक सुनाए, सखी री मुझे विरह सताए’ के जरिए उन्होंने श्रोताओं को विरह रस से सराबोर कर दिया। माहौल को आध्यात्मिक रंग में रंगने के साथ भजन ‘तुम बिन मोरी कौन खबर ले, गोवर्धन गिरधारी’ के साथ उन्होंने प्रस्तुति का समापन किया। तबले पर पद्मश्री सुरेश तलवलकर की संगत ने प्रस्तुति को खास बनाया।

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(Udaipur Kiran)

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