जम्मू, 16 अगस्त (Udaipur Kiran) । भाद्रपद कृष्ण पक्ष की नवमी को मनाया जाने वाला श्रीगुग्गा (गोगा) नवमी का पावन पर्व इस वर्ष 17 अगस्त 2025 (रविवार) को मनाया जाएगा। इस संबंध में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं प्रमुख ज्योतिषाचार्य महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि यह पर्व जनमानस की गहरी आस्था और लोकश्रद्धा से जुड़ा हुआ है। लोकमान्यताओं के अनुसार गोगा जी को सर्पों के देवता के रूप में पूजा जाता है। उन्हें गोगाजी, गुग्गा वीर, जाहिर वीर, राजा मण्डलिक आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। वे गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे और राजस्थान के छह सिद्धों में समय की दृष्टि से प्रथम माने जाते हैं।
इस दिन जम्मू-कश्मीर में राजा मण्डलिक, उनके वज़ीर बाबा कालीवीर, बाबा सुरगल, मल माता आदि कुलदेव स्थानों पर हवन, यज्ञ, यात्र, तथा भंडारे का आयोजन होता है। श्रद्धालु (जातरु) इन स्थलों पर धोक देते हैं और अखाड़ों में बैठकर गोगा जी एवं उनके शिष्यों की जीवन कथाएं अपनी-अपनी स्थानीय भाषाओं में गाकर सुनाते हैं। इस दौरान ढोल, डैरूं और कांसी का कचौला जैसे वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं। विशेष बात यह है कि एक जातरु लोहे की सांकल से अपने शरीर पर प्रहार कर वीरता की परंपरा का प्रतीक प्रदर्शन करता है।
गोगा जी की पूजा सांपों से रक्षा के लिए की जाती है। यह पूजा श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबंधन) से शुरू होकर नवमी तक नौ दिनों तक चलती है, इसलिए इसे गोगा नवमी कहा जाता है। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में यह पर्व विशेष श्रद्धा से मनाया जाता है। मान्यता है कि गोगा जी के पूजा स्थल की मिट्टी को घर में रखने से सर्प भय से मुक्ति मिलती है। गोगा जी का जन्म गोगामेड़ी (राजस्थान) में हुआ था। उनकी माता बाछल देवी को संतान सुख नहीं था। उन्होंने गुरु गोरखनाथ की शरण ली। गुरुदेव ने उन्हें तप से सिद्ध गुगल नामक फल प्रसाद रूप में दिया। उसे ग्रहण करने के बाद बाछल देवी गर्भवती हुईं और गोगा जी का जन्म हुआ। गुगल नाम से ही उन्हें गोगा जी कहा जाने लगा।
भाद्रपद कृष्ण नवमी को प्रातः स्नान करके महिलाएं खीर, चूरमा, गुलगुले आदि पकवान बनाती हैं। मिट्टी से बनी गोगा जी की मूर्तियों की पूजा की जाती है। रोली-चावल से तिलक, पकवानों का भोग, और गोगा जी के घोड़े के आगे दाल अर्पित की जाती है। रक्षाबंधन के दिन बांधी गई राखी इस दिन उतारकर गोगा जी को समर्पित की जाती है। कई स्थानों पर गोगा जी की घोड़े पर सवार वीर मूर्तियाँ स्थापित होती हैं। हर राज्य में पूजा की पद्धति में थोड़े अंतर होते हैं, किंतु भावना एक ही रहती है, सर्प भय से रक्षा, मनोकामना पूर्ति और वीर परंपरा का सम्मान।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा
