पाठ्यक्रम में पहली बार सिख गुरुओं के गौरवशाली इतिहास को किया गया शामिल
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने सिख परंपरा के सम्मान का रखा पूरा ध्यान
गोरखपुर, 24 अगस्त (Udaipur Kiran) । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को गोरखपुर के पैडलेगंज स्थित गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा में एक बार फिर सिखों के शौर्य, पराक्रम और बलिदान को याद किया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने पर्यटन विकास कार्यों, गुरुद्वारा भवन के नए स्वरूप और बुनियादी सुविधाओं के विस्तार कार्यों का भी शुभारंभ किया। विगत साढ़े 8 वर्षों में सिखों के धार्मिक स्थलों के विकास से लेकर उनके सम्मान के लिए जो काम सीएम योगी ने कर दिखाया है, उसकी कल्पना दशकों तक किसी ने नहीं की थी। जिस सिख परंपरा ने सनातन और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने नन्हें साहिबजादों तक का बलिदान दिया, वही परंपरा पिछली सरकारों की उपेक्षा का शिकार रही। न तो उनके बलिदान को पाठ्यक्रमों में स्थान मिला, न ही सार्वजनिक जीवन में वह सम्मान, जिसके वे अधिकारी थे। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस उपेक्षित धरोहर को नया जीवन दिया। सत्ता संभालने के बाद उन्होंने न केवल सिख समुदाय के गौरव को पुनर्जीवित किया, बल्कि स्पष्ट किया कि सिख परंपरा सनातन संस्कृति की उस महान धारा का हिस्सा है, जिसमें बलिदान और धर्म रक्षा सर्वोपरि हैं। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में मुख्यमंत्री आवास पहली बार सिख श्रद्धा का केंद्र बना—जहां गुरुवाणी गूंजी, साहिबजादों के बलिदान की गाथा सुनाई गई और नई परंपराओं की शुरुआत हुई। स्वयं मुख्यमंत्री ने गुरुद्वारों में शीश नवाकर और सिख प्रतिनिधिमंडलों से सतत संवाद करके यह संदेश दिया कि सिखों का गौरव सनातन और उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान का अविभाज्य हिस्सा है।
सिखों की विरासत का हुआ विकास
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सिख समुदाय के सम्मान और उत्थान के लिए ऐसे कदम उठाए हैं, जो न केवल ऐतिहासिक हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करेंगे। दिसंबर 2020 में उनकी पहल पर पहली बार सिख गुरुओं के गौरवशाली इतिहास को उत्तर प्रदेश के स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। राजधानी लखनऊ के आलमबाग में खालसा चौक का उद्घाटन किया गया, जिससे सिख परंपरा का गौरव आम जनजीवन के बीच स्थापित हुआ। वहीं, साहिबजादा दिवस को सरकारी स्तर पर मनाने की शुरुआत कर योगी सरकार ने यह संदेश दिया कि गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों का बलिदान उतना ही पवित्र और अनुकरणीय है, जितना रामायण में लक्ष्मण का त्याग और महाभारत में अभिमन्यु का शौर्य। यह भी उल्लेखनीय है कि इस घोषणा से पहले ही मुख्यमंत्री आवास सिख श्रद्धा का केंद्र बन चुका था, जहां गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व का भव्य आयोजन हुआ, गुरुवाणी गूंजी और साहिबजादों के बलिदान को याद करने वाले आयोजन हुए। इस प्रकार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न केवल परंपराओं को जीवित किया, बल्कि सिख गौरव को सनातन संस्कृति की उस धारा से फिर जोड़ा, जिसमें बलिदान और धर्म रक्षा सर्वोपरि हैं।
पंच तख्त यात्रा योजना की ऐतिहासिक पहल
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विज़न की सबसे बड़ी मिसाल हाल ही में शुरू की गई “पंच तख्त यात्रा योजना” है। यह केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि सिख श्रद्धा और सनातन संस्कृति के बीच जीवंत सेतु का प्रतीक है। पहली बार उत्तर प्रदेश सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि प्रदेश के सिख श्रद्धालु पंथ के पांचों पवित्र तख्त साहिबों- श्री आनंदपुर साहिब और श्री अकाल तख्त साहिब (पंजाब), श्री दमदमा साहिब (पंजाब), श्री तख्त सचखंड श्री हजूर साहिब (नांदेड़, महाराष्ट्र), श्री हरमंदिर जी साहिब (पटना, बिहार) की यात्रा कर सकें। इस योजना के तहत श्रद्धालुओं को न केवल इन पवित्र स्थलों के दर्शन कराए जाएंगे, बल्कि प्रति श्रद्धालु न्यूनतम ₹10,000 की आर्थिक सहायता भी दी जाएगी। इससे यह स्पष्ट हो गया कि योगी सरकार केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि सिख परंपरा के गौरव को वास्तविक स्वरूप में समाज के बीच प्रतिष्ठित कर रही है।
सिख-नाथ परंपरा: राष्ट्रभक्ति और बलिदान की साझा धारा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर सिख गुरुओं के अमर बलिदान को स्मरण करते हैं। उनका मानना है कि सिख और नाथ परंपरा, दोनों ही राष्ट्रभक्ति और बलिदान की साझा धारा हैं। जब वे गुरुद्वारों में जाकर मत्था टेकते हैं, तो वह केवल औपचारिकता नहीं होती, बल्कि उस ऐतिहासिक रिश्ते को जीवित करने का प्रयास होता है, जिसे गुरु नानक देव जी और गोरखनाथ संप्रदाय ने सदियों पहले स्थापित किया था। उनकी सरकार ने प्रदेश में सिख तीर्थ स्थलों के विकास को प्राथमिकता दी है। गुरुद्वारों के आसपास बुनियादी ढांचे का सुधार, श्रद्धालुओं के लिए आधुनिक सुविधाएं और धार्मिक आयोजनों को सहज बनाने की दिशा में निरंतर काम किया जा रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक स्तर पर सिख परंपरा को सम्मान दिलाने के प्रयास किए हैं, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण करतारपुर कॉरिडोर है। उसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी प्रयागराज महाकुंभ जैसे आयोजनों में सिख अखाड़ों और गुरुद्वारों को विशेष स्थान देकर ठोस पहल की है।
तुष्टीकरण से परे, विरासत को सम्मान
यह वही उत्तर प्रदेश है, जहां पिछली सरकारें केवल तुष्टीकरण की राजनीति में उलझी रहीं। न सिख गुरुओं के बलिदान को स्थान मिला, न उनकी पहचान को उचित सम्मान। उन्हें सनातन से अलग करने के प्रयास हुए। परंतु, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह साबित कर दिया है कि जब नेतृत्व में आस्था और राष्ट्रभक्ति का संकल्प होता है, तो परंपराएं केवल जीवित नहीं रहतीं, बल्कि नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन जाती हैं। बैसाखी पर्व पर मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा था कि सिख परंपरा, सनातन धर्म की ही एक अमर धारा है। इस धारा ने हमें सिखाया है कि धर्म की रक्षा और राष्ट्र की सेवा ही जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है। आज उत्तर प्रदेश में यह भावना गहराई से स्थापित हो चुकी है कि सनातन और सिख परंपरा अलग नहीं, बल्कि एक ही सांस्कृतिक विरासत की दो धाराएं हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस साझा विरासत को नई ऊंचाइयों तक ले जाकर न केवल इतिहास को पुनर्जीवित कर रहे हैं, बल्कि भविष्य की दिशा भी तय कर रहे हैं।
(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय
