इटानगर, 14 जुलाई (Udaipur Kiran) । अरुणाचल प्रदेश सियांग स्वदेशी किसान मंच (एसआईएफएफ) ने सियांग अपर बहुउद्देशीय परियोजना (एसयूएमपी) के प्रस्ताव का कड़ा विरोध करते हुए रीगा गांव के कुछ ग्रामीणों और राज्य सरकार के बीच समझौता ज्ञापन की पूर्व-व्यवहार्यता रिपोर्ट (पीएफआर) के लिए हुए समझौता ज्ञापन का विरोध किया है।
आज यहां अरुणाचल प्रेस क्लब में पत्रकारों को संबोधित करते हुए, मंच के संयोजक एवं प्रवक्ता डुग्गे अपांग ने बताया कि उनके सूत्रों के अनुसार, 15 जुलाई को नई दिल्ली में एसयूएमपी के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राज्य सरकार के साथ बैठक होगी।
हमने सियांग अपर बहुउद्देशीय परियोजना (एसयूएमपी) और पूर्व-व्यवहार्यता रिपोर्ट (पीएफआर) गतिविधियों के खिलाफ अपना ज्ञापन मुख्य सचिव, अरुणाचल प्रदेश सरकार के माध्यम से प्रधानमंत्री को लिखकर भेज दिया है।
उन्होंने कहा कि परियोजना प्रभावित परिवारों (पीएएफ) और सभी डूब क्षेत्र के गांवों के निवासियों की ओर से एसआईएफएफ, सियांग अपर बहुउद्देशीय परियोजना (एसयूएमपी) और पूर्व-व्यवहार्यता रिपोर्ट (पीएफआर) गतिविधियों के प्रस्ताव का कड़ा विरोध करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि एसआईएफएफ ने परियोजना और कुछ अधिकारियों द्वारा प्रचारित भ्रामक आख्यानों के बारे में प्रधानमंत्री को सचेत करने के लिए पत्र लिखा है। साथ ही, वह यह भी बताना चाहता है कि क्षेत्र के प्रभावित लोग वास्तव में क्या चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि हाल ही में हुए समझौता ज्ञापन का विरोध करते हुए परियोजना प्रभावित परिवारों ने सोमवार सुबह अपर सियांग जिले के गेकू कस्बे में एक शांतिपूर्ण रैली का आयोजन किया, जिसमें हजारों ग्रामीण शामिल हुए।
मुख्यमंत्री पेमा खांडू के हालिया बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए कि रीगा गांव के निवासियों सहित अधिकांश प्रभावित समुदाय एसयूएमपी या पीएफआर गतिविधियों के पक्ष में हैं।
उन्हो ने कहा कि जिन लोगों ने कथित तौर पर अपनी सहमति दी है, वे रीगा का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, क्योंकि उन्हें रीगा हम्बंग-हिराम बाने केबांग यानी रीगा गांव की पारंपरिक शीर्ष, अपीलीय और सर्वोच्च परिषद द्वारा अधिकृत नहीं किया गया है।
खांडू ने उल्लेख किया कि गांव के 80 प्रतिशत से अधिक घरों ने पीएफआर का समर्थन करने का वचन दिया है, जो कि गलत है, रीगा गांव की लगभग 2,000 आबादी में से केवल 17 व्यक्तियों ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। इसे समुदाय के सामूहिक निर्णय के रूप में नहीं देखा जा सकता।
हम प्रभावित समुदायों के लिए जारी मानवाधिकार उल्लंघनों और प्रभावी शिकायत निवारण तंत्रों की कमी को लेकर बेहद चिंतित हैं। हमारे लगातार प्रयासों के बावजूद, राज्य के अधिकारियों ने डूब प्रभावित गांवों की चिंताओं का पर्याप्त समाधान नहीं किया है। इसके बजाय, मुख्यमंत्री और ओजिंग तासिंग जैसे अन्य विधायकों द्वारा प्रचारित एक झूठा विमर्श परियोजना के लिए सामुदायिक समर्थन की भ्रामक तस्वीर पेश कर रही है।
राज्य के मंत्रिमंडल ने क्षेत्र के प्रभावित लोगों से परामर्श या चर्चा किए बिना, एसयूएमपी की पूर्व-व्यवहार्यता रिपोर्ट और नए गेकू और नए यिंगकिओंग के स्थानांतरण के संबंध में विभिन्न निर्णय ले रहे हैं, जो प्रभावित स्थानीय जनता के लिए बहुत दुखद बात है।
उन्होंने कहा, राज्य सरकार इस परियोजना को राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजना बताकर उसे सही ठहराने की कोशिश कर रही है, अगर वास्तव में यह परियोजना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए है तो जनता के सामने दस्तावेज़ पेश करें और हमें बताये। लेकिन हमने कोई राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजना नहीं दिख रही है।
इसके अलावा, उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से अनुरोध किया कि वे राज्य सरकार और उसकी रिपोर्टों पर विश्वास न करें और प्रभावित ग्रामीणों की वास्तविक स्थिति और राय जानने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को क्षेत्र का दौरा करने का अनुरोध किया।
(Udaipur Kiran) / तागू निन्गी
