

शिमला, 03 अगस्त (Udaipur Kiran) । प्राकृतिक सुंदरता और सेब के उत्पादन के लिए मशहूर शिमला अब सेब की बर्फी के तौर पर भी एक नई पहचान बना रहा है। जिले के आकांक्षी विकास खंड छौहारा की महिलाओं के जय देवता जाबल नारायण स्वयं सहायता समूह ने मेहनत और हुनर से यह अनोखा स्वाद तैयार किया है, जिसकी मांग अब लगातार बढ़ रही है।
समूह की सदस्य सपना बताती हैं कि सेब की बर्फी पूरी तरह ऑर्गेनिक तरीके से बनती है। सबसे पहले बढ़िया किस्म के सेब चुनकर उन्हें अच्छी तरह धोया जाता है, फिर पल्प निकालकर देर तक पकाया जाता है। इसमें ड्राई फ्रूट मिलाकर और पकाने के बाद जब रंग गहरा भूरा हो जाता है, तो उसे प्लेट में तीन-चार दिन रखा जाता है। बाद में छोटे टुकड़ों में काटकर पैकिंग की जाती है। खास बात यह है कि यह बर्फी एक साल तक बिना फंगस के सुरक्षित रहती है और स्वाद भी ताजा बना रहता है।
सेब की बर्फी का एक डिब्बा 325 रुपये में बिक रहा है और इसे रिज मैदान के पास पदमदेव परिसर में लगे ‘आकांक्षी हाट’ के स्टॉल से खरीदा जा सकता है। इसके अलावा समूह ऑनलाइन डिलीवरी भी कर रहा है। हर महीने करीब 35 हजार रुपये की बर्फी बिक रही है, जिसमें कुल्लू समेत कई अन्य जिलों में भी डिमांड है।
यह समूह वर्ष 2019 में जाबली गांव की पांच महिलाओं ने एनआरएलएम की मदद से 15 हजार रुपये से मटर की खेती शुरू कर बना था। पहले ही साल 75 हजार की कमाई हुई, फिर अगले साल ढाई लाख रुपये की। इसके बाद समूह ने एप्पल सीडर विनेगर, जैम, चटनी, आचार, जूस और ड्राइड फलों जैसे कई उत्पाद तैयार किए और आज सेब की बर्फी सबसे खास पहचान बन गई है।
समूह की प्रधान आशु ठाकुर का कहना है कि लगातार मेहनत से उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखते हैं और प्रदेश सरकार से मिले सहयोग से मेलों में स्टॉल लगाने का भी मौका मिलता है। एनआरएलएम मिशन छौहारा के एग्जीक्यूटिव कुशाल सिंह ने कहा कि डोडरा क्वार जैसे जनजातीय क्षेत्रों में भी इसी तरह के समूहों को प्रोत्साहित कर आजीविका के नए अवसर दिए जाएंगे।
उपायुक्त शिमला अनुपम कश्यप ने बताया कि जिले के स्वयं सहायता समूह बेहतरीन काम कर रहे हैं और जिला प्रशासन उन्हें प्रशिक्षण, स्टॉल और अन्य सुविधाएं देकर आगे बढ़ने में मदद कर रहा है। उन्होंने कहा कि स्थानीय उत्पादों की देश-विदेश में भी मांग बढ़ रही है, जिससे ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिल रहा है।
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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा
