शिमला, 10 सितंबर (Udaipur Kiran) । हिमाचल प्रदेश सरकार के प्रयास रंग ला रहे हैं और चिल्ड्रन ऑफ द स्टेट (अनाथ बच्चों) को अब नए माता-पिता मिल रहे हैं। शिशु गृह टूटीकंडी शिमला में बुधवार को दो बच्चों को उनके भावी माता-पिता को दत्तक दिलवाया गया। उपायुक्त शिमला अनुपम कश्यप की देखरेख में यह प्रक्रिया पूरी की गई। इनमें से एक बच्चा उत्तराखंड के दंपत्ति ने गोद लिया जबकि दूसरा बच्चा उत्तर प्रदेश के दंपत्ति ने अपना लिया।
20 दिसंबर 2022 से 1 सितंबर 2025 तक अब तक कुल 21 बच्चों को दत्तक दिलवाया जा चुका है। सरकार के इन सार्थक प्रयासों से अनाथ बच्चों को नया जीवन और सुरक्षित भविष्य मिल रहा है।
उपायुक्त अनुपम कश्यप ने समाज के सक्षम और समृद्ध परिवारों से अपील की कि वे शिशु गृह और बाल-बालिका आश्रमों में पल रहे बच्चों को अपनाने के लिए आगे आएं। उन्होंने कहा कि दत्तक ग्रहण से न केवल बच्चों को प्यार और परिवार मिलता है बल्कि उनके जीवन को सही दिशा भी मिलती है।
जिला कार्यक्रम अधिकारी शिमला ममता पॉल ने बताया कि बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी तरह से मेरिट और कानूनी नियमों पर आधारित होती है। केवल वही दंपत्ति या व्यक्ति दत्तक ग्रहण कर सकता है जो केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) द्वारा तय शर्तों और अधिनियम के नियमों को पूरा करता हो।
उन्होंने बताया कि भारत में हर भारतीय नागरिक, एनआरआई और विदेशी नागरिक बच्चे को गोद ले सकते हैं। इसके लिए उन्हें आवश्यक दस्तावेज जैसे आधार, पैन कार्ड, जन्म तिथि का प्रमाण पत्र, आयकर रिटर्न, मेडिकल सर्टिफिकेट और शादी/तलाक का प्रमाण पत्र जमा करना अनिवार्य है।
उन्होंने कहा कि गोद लेने की प्रक्रिया हिंदू दत्तक और भरण पोषण अधिनियम 1956 तथा किशोर न्याय अधिनियम 2015 के तहत पूरी की जाती है। हिमाचल में यह कार्य विशेषीकृत एडॉप्शन एजेंसी के माध्यम से होता है। पहले चरण में माता-पिता CARA पोर्टल पर पंजीकरण करते हैं। इसके बाद सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा होम स्टडी रिपोर्ट तैयार की जाती है। रिपोर्ट संतोषजनक होने पर उन्हें बच्चे का संदर्भ दिया जाता है और 48 घंटे में निर्णय लेना होता है।
उन्होंने बताया कि बच्चे को स्वीकार करने के बाद कुछ समय तक उसे दंपत्ति के पास देखभाल हेतु रखा जाता है। इसके उपरांत अदालत और एजेंसी की औपचारिकताओं के बाद बच्चा कानूनी रूप से दत्तक माता-पिता का हो जाता है। दत्तक ग्रहण के बाद दो वर्षों तक हर छह माह में एजेंसी द्वारा फॉलोअप भी किया जाता है ताकि बच्चे की सही परवरिश सुनिश्चित की जा सके।
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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा
