West Bengal

शमिक भट्टाचार्य – सामान्य स्वयंसेवक से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष तक का सफर

रवि शंकर प्रसाद और शमिक भट्टाचार्य

कोलकाता, 3 जुलाई (Udaipur Kiran) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े, लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रति निष्ठावान और संगठन में भरोसेमंद चेहरे के रूप में पहचान बनाने वाले राज्यसभा सांसद शमिक भट्टाचार्य को पश्चिम बंगाल भाजपा का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। पार्टी नेतृत्व ने यह फैसला ऐसे वक्त में लिया है जब संगठन आंतरिक कलह, असंतोष और नेतृत्व संकट से जूझ रहा है। 2026 में विधानसभा चुनावों को देखते हुए शमिक को यह जिम्मेदारी देकर पार्टी ने स्पष्ट संकेत दिया है कि अब वह बंगाल में भाजपा का परचम लहराने की रणनीति पर गंभीरता से काम कर रही है।

61 वर्षीय शमिक भट्टाचार्य की यह नियुक्ति दशकों की संगठनात्मक निष्ठा और वैचारिक प्रतिबद्धता का प्रतिफल मानी जा रही है। वह एक सामान्य स्वयंसेवक से बंगाल भाजपा अध्यक्ष के पद पर पहुंचे हैं। इसके साथ ही उनके समक्ष बंगाल में सत्ता हासिल करने की जुगत में लगी पार्टी को संगठनात्मक तौर पर सशक्त करने की चुनौतियां भी हैं। राजनीतिक रूप से वे सदा सुर्खियों से दूर रहते हुए भी संगठन के भीतर एक भरोसेमंद स्तंभ बने रहने वाले शमिक पार्टी के अंदर भी एक लोकप्रिय चेहरा माने जाते हैं। पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह पद उन्हें बहुत पहले मिलना चाहिए था, लेकिन आंतरिक राजनीति और टकरावों के कारण यह रास्ता लंबा खिंच गया।

शमिक भट्टाचार्य का राजनीतिक सफर 1970 के दशक के मध्य में शुरू हुआ, जब उन्होंने हावड़ा के मंदिरतला इलाके में स्कूली दिनों के दौरान आरएसएस की शाखाओं में भाग लेना शुरू किया। इसके बाद वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े और फिर पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में राजनीति में सक्रिय हो गए। 1990 के दशक में तब के दिग्गज नेता तपन सिकदर के दौर में भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमाे) से होते हुए वे राज्य भाजपा में महत्वपूर्ण पदों तक पहुंचे। बीते तीन दशकों में उन्होंने राज्य महासचिव, उपाध्यक्ष और मुख्य प्रवक्ता जैसी अहम जिम्मेदारियां निभाईं।

भट्टाचार्य ने अपने राजनीतिक जीवन में कई चुनावी उतार-चढ़ाव देखे। 2006 में श्यामपुर विधानसभा सीट और 2014 में बशीरहाट लोकसभा सीट से हार के बाद उन्होंने उसी वर्ष बशीरहाट दक्षिण सीट से उपचुनाव जीतकर भाजपा के पहले विधायक के रूप में पहचान बनाई। 2016 में यह सीट हारने के बावजूद पार्टी में उनका कद बरकरार रहा।

शमिक भट्टाचार्य के एक करीबी सहयोगी के अनुसार, 2016 में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने उन्हें पार्टी में शामिल होने और मंत्री पद का ऑफर दिया था, लेकिन उन्होंने वैचारिक निष्ठा को तरजीह देते हुए यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। यह उनके चरित्र और सिद्धांतों की दृढ़ता को दर्शाता है।

2020 से 2024 तक मुख्य प्रवक्ता के रूप में विभिन्न समाचार चैनलों और मीडिया बाइट्स के दौरान उनके शांत, तथ्यपूर्ण और प्रभावशाली वक्तव्यों ने उन्हें खास पहचान दिलाई। अप्रैल, 2024 में राज्यसभा में उनका नामांकन केंद्र की ओर से उनकी दीर्घकालिक सेवा का सम्मान माना गया। संसद में उन्होंने चुनाव सुधार, संघवाद और आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर मुखर होकर पार्टी की नीतियों को धार दी।

भाजपा के लिए यह नियुक्ति बेहद अहम मानी जा रही है। 2021 विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद से पार्टी लगातार असंतोष, गुटबाजी और चुनावी हार से जूझ रही है। पंचायत चुनावों और 2024 लोकसभा चुनावों में कमजोर प्रदर्शन ने संगठन को कमजोर कर दिया है। ऐसे में उनके कंधों पर अब संगठन को बूथ स्तर तक दोबारा खड़ा करने, अनुशासन बहाल करने और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी के नेतृत्व वाले विधायक दल तथा पूर्व अध्यक्ष सुकांत मजूमदार के साथ समन्वय स्थापित करने की बड़ी जिम्मेदारी है। यह भी माना जा रहा है कि शुभेंदु अधिकारी के साथ उनके सौहार्दपूर्ण संबंध उनकी नियुक्ति का एक अहम कारण हैं।

शमिक भट्टाचार्य की साफ-सुथरी छवि, वैचारिक पृष्ठभूमि और संवाद की दक्षता को देखते हुए पार्टी को उम्मीद है कि वे पश्चिम बंगाल में संगठन को नई ऊर्जा देंगे और ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को कड़ी चुनौती देने की जमीन तैयार करेंगे।

हालांकि यह देखना अभी बाकी है कि वे पार्टी के भीतर के मतभेदों को पाट कर जमीनी कार्यकर्ताओं में नई जान फूंक पाते हैं या नहीं। लेकिन इतना तय है कि उन्होंने इस क्षण के लिए लंबा इंतजार किया है और अपनी मेहनत से इसे हासिल किया है।————————

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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