
-मुख्यमंत्री ने डॉ. भट्टाचार्य के निधन पर जताया शोक
नलबाड़ी (असम), 23 जुलाई (Udaipur Kiran) । प्रख्यात असमिया लेखक, कवि, शिक्षाविद और आलोचक डॉ. बसंत कुमार भट्टाचार्य का बुधवार की सुबह नलबाड़ी स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों ने पुष्टि की है कि वे 83 वर्ष के थे और लंबी बीमारी से जूझ रहे थे।
मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा ने डॉ. बसंत कुमार भट्टाचार्य के निधन पर शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर करते हुए कहा है कि प्रसिद्ध शिक्षाविद, नलबाड़ी कॉलेज के असमिया विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर, साहित्याचार्य डॉ. बसंत कुमार भट्टाचार्य के निधन की खबर सुनकर बहुत दुखी हूं। एक बुद्धिमान, प्रज्ञावान और वाग्मी पुरुष, नालबाड़ी के रत्न डॉ. भट्टाचार्य का असम की साहित्यिक दुनिया में योगदान हमेशा यादगार रहेगा। इस महान व्यक्तित्व की आत्मा की शांति के लिए भगवान के चरणों में प्रार्थना करता हूं और शोकाकुल परिवार तथा प्रतिभा के प्रशंसा करने वालों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करता हूं।
नलबाड़ी जिले में 1 फरवरी, 1942 को जन्मे डॉ. भट्टाचार्य असम के साहित्यिक परिदृश्य में एक प्रतिष्ठित हस्ती के रूप में उभरे। विविध साहित्यिक विधाओं के ज्ञाता डॉ. बसंत कुमार भट्टाचार्य ने प्रोटेस्ट, द स्काई इज़ ब्लू, अनअटैच्ड वॉयसेस और फ्रैगमेंट्स ऑफ ड्रीम्स एंड नाइटमेयर्स जैसी प्रशंसित लघु-कथा संग्रहों की रचना की। उन्हें कविता संग्रह, योर हार्ट्स वार्मथ और समटाइम्स अलोन इन द डेजर्ट की काव्यात्मक समृद्धि और भावनात्मक लेखन के लिए प्रशंसा मिली।
डॉ. बसंत कुमार भट्टाचार्य की प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूलों में हुई और फिर उन्होंने कॉटन कॉलेज और गौहाटी विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कुछ समय के लिए गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा की पढ़ाई की, लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। साहित्य की ओर रुख करते हुए, उन्होंने असमिया में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की और दिसंबर 1968 में नलबाड़ी कॉलेज के साथ जुड़ने से पहले पहले, बरनगर कॉलेज में अपने शिक्षण करियर की शुरुआत की। वहां, उन्होंने जनवरी 2002 में अपनी सेवानिवृत्ति तक असमिया विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य किया।
शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में अपनी भूमिका में, डॉ. भट्टाचार्य ने 15 डॉक्टरेट विद्वानों का मार्गदर्शन किया और कई जूनियर कॉलेजों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने 2011 तक अतिथि संकाय सदस्य के रूप में योगदान देना जारी रखा।
उन्हें असम साहित्य सभा द्वारा प्रदान किए गए साहित्याचार्य और जिले की साहित्यिक संस्था द्वारा नलबाड़ी रत्न जैसे प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए।
अपने अंतिम वर्षों में भी डॉ. भट्टाचार्य असमिया साहित्य में एक जीवंत स्वर बने रहे। उनके निधन को असम में साहित्य और शिक्षा जगत के लिए एक गहरी क्षति के रूप में शोक व्यक्त किया जा रहा है।———–
(Udaipur Kiran) / अरविन्द राय
