शिमला, 28 जून (Udaipur Kiran) । भारतीय सेना की सेंट्रल कमांड ने शनिवार को शिमला के डान्फे हॉल में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया। इस संगोष्ठी में विशेषज्ञों, सैन्य अधिकारियों और रणनीतिकारों ने भारत-तिब्बत के गहरे सभ्यतागत संबंधों और सीमावर्ती क्षेत्रों में उनकी रणनीतिक प्रासंगिकता पर विचार साझा किए।
कार्यक्रम का उद्घाटन सेंट्रल कमांड के जीओसी-इन-सी लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता, पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम ने किया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि सांस्कृतिक कूटनीति और ऐतिहासिक समझ, विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में, राष्ट्रीय सुरक्षा के अहम स्तंभ हैं। संगोष्ठी दो सत्रों में आयोजित हुई।
पहला सत्र भारत-तिब्बत संबंध: सभ्यतागत, आध्यात्मिक और आर्थिक दृष्टिकोण पर आधारित रहा।
इस सत्र में इतिहासकार क्लॉड अर्पी ने उत्तरी भारत और पश्चिमी तिब्बत के बीच ऐतिहासिक संबंधों पर चर्चा की।
डॉ. शशिबाला ने साझा बौद्ध परंपराओं और पवित्र स्थलों की विरासत को रेखांकित किया।
डॉ. अपर्णा नेगी ने शिपकी ला जैसे प्राचीन व्यापार मार्गों की आज के संदर्भ में प्रासंगिकता बताई।
दूसरा सत्र सीमा प्रबंधन और रणनीतिक चुनौतियाँ पर केंद्रित रहा।
इस सत्र का संचालन मेजर जनरल जी. जयशंकर (से.नि.) ने किया। इसमें लेफ्टिनेंट जनरल राज शुक्ला (से.नि.), डॉ. अमृता जश, डॉ. दत्तेश डी. परुळेकर, अंतरा घोषाल सिंह और राजदूत अशोक के. कंठ जैसे वक्ताओं ने भाग लिया। चर्चा में चीन की ग्रे-ज़ोन रणनीति, भारत की सीमा नीति, साइकोलॉजिकल वॉरफेयर और कूटनीतिक समन्वय जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल रहे।
संगोष्ठी से पहले 24 से 27 जून तक प्रतिभागियों ने पूह, शिपकी ला, सुम्दो, नाको, ताबो, ग्यू और काजा जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों का दौरा किया। इन दौरों ने उन्हें सीमावर्ती क्षेत्रों की सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति और भू-रणनीतिक महत्व को प्रत्यक्ष रूप से समझने का अवसर दिया।
समापन सत्र में उत्तर भारत एरिया के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल डी.जी. मिश्रा, एवीएसएम ने कहा कि सांस्कृतिक निरंतरता और रणनीतिक समझ के बीच संतुलन बनाना समय की मांग है। उन्होंने वक्ताओं के योगदान की सराहना करते हुए सेना की ऐसी पहलों में निरंतर भागीदारी का आश्वासन दिया।
—————
(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा
