
ऊना, 26 जुलाई (Udaipur Kiran) । 27 जुलाई 2020 को जब समाज सेवा, कर्मचारी नेतृत्व और मानवीय सरोकारों के एक चमकते सूर्य कंवर हरिसिंह इस नश्वर संसार से विदा हुए, तब हर संवेदनशील मन ने एक सच्चे कर्मयोगी को खोने का दर्द महसूस किया। आज उनकी 5वीं पुण्यतिथि पर जब हम उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण समाज, सेवा और न्याय के लिए जिया।
कंवर हरिसिंह ने जीवनभर यह सिद्ध किया कि सच्चा धर्म मानव सेवा है। उनकी सोच केवल विचारों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने ज़मीनी स्तर पर कार्य करते हुए समाज के हर उस वर्ग तक पहुँचना चाहा, जो उपेक्षित, पीड़ित या हाशिए पर था।
उन्होंने अपने कार्यकाल की शुरुआत भारत सरकार के लैंड कस्टम विभाग में की। इसके बाद हिमाचल सरकार में एक्सटेंशन ऑफिसर उद्योग, जिला प्रबंधक, डीआरडीए प्रोजेक्ट ऑफिसर आदि महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए उन्होंने प्रशासन को जनसेवा का माध्यम बनाया। 1998 में हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति विकास निगम तथा महिला विकास निगम के महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए।
कंवर हरिसिंह प्रदेश के करीब अढ़ाई लाख कर्मचारियों की आवाज बने। वे हिमाचल अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के महासचिव रहे और उनके नेतृत्व में दो बड़े कर्मचारी आंदोलन हुए, जिनके परिणामस्वरूप कर्मचारियों के लिए दीर्घकालीन नीतियाँ बनीं। वे राज्य राजपत्रित अधिकारी संघ के अध्यक्ष भी रहे। उनके नेतृत्व में कर्मचारी संगठनों को संगठित स्वरूप मिला और जनसेवकों की गरिमा को सम्मान मिला।
1974 में उन्होंने “हिमोत्कर्ष साहित्य, संस्कृति एवं जनकल्याण परिषद” की स्थापना की। यह संस्था आज प्रदेश की अग्रणी स्वयंसेवी संस्थाओं में से एक है। परिषद की प्रदेश भर में स्थापित शाखाएँ शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, बाल संरक्षण और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
उनकी अगुवाई में कोटला खुर्द में स्थापित लाला जगतनारायण हिमोत्कर्ष कन्या महाविद्यालय को सरकार द्वारा अधिग्रहित कर जिला का पहला सरकारी महिला महाविद्यालय घोषित किया गया।यह उनकी दूरदर्शी सोच और नारी शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
स्व. कंवर हरिसिंह नेशनल सोसाइटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ ब्लाइंडनेस, हिमाचल के फाउंडर जनरल सेक्रेटरी रहे। उनके प्रयासों से प्रदेश में 100% स्कूली बच्चों की नेत्र जांच संभव हुई और हिमाचल भारत का पहला कैटरेक्ट-फ्री स्टेट बना। उन्होंने अनेक नेत्र जांच एवं ऑपरेशन शिविरों का आयोजन करवाया और हजारों लोगों को आंखों की रोशनी लौटाने में अहम भूमिका निभाई।
वह रोटरी इंटरनेशनल जिला 3070 के वरिष्ठ सदस्य रहे। उन्हें रोटरी के सर्वोच्च सम्मानों में शामिल “सर्विस अबव सेल्फ अवार्ड”, “रोटरी रत्न”, “गॉडफ्रे ब्रेवरी अवार्ड” सहित अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले।
1986 में ऊना के ईसपुर गांव में विश्व की पहली “रोटरी विलेज कोर” की स्थापना कर उन्होंने रोटरी मूवमेंट को ग्रामीण परिवेश से जोड़ा। ऊना में ब्लड बैंक, फिजियोथेरेपी सेंटर, नेत्र अस्पताल, कुष्ठ रोगियों का पुनर्वास केंद्र, और रोटरी चौक जैसे अनेकों कार्य उनके नेतृत्व में हुए।
कंवर हरिसिंह अखिल भारतीय सामाजिक संस्था संघ के तीन दशकों तक राष्ट्रीय महासचिव रहे। इस मंच के माध्यम से उन्होंने पूरे देश में हिमाचल की संस्कृति, समस्याएं, प्रवासी समाज के मुद्दों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया और उनके समाधान हेतु कार्य किया।
सेवानिवृत्ति के बाद भी वे एक सक्रिय और निर्भीक पत्रकार के रूप में समाज से जुड़े रहे। उन्होंने कई अखबारों में लेख, स्तंभ और जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों पर धारदार कलम चलाई। उनकी लेखनी ने न केवल व्यवस्था की खामियों को उजागर किया बल्कि समाधान की दिशा भी सुझाई।
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(Udaipur Kiran) / विकास कौंडल
