
-साक्ष्यों के आधार पर ही तलब किए जा सकते हैं अतिरिक्त अभियुक्त, समन आदेश रद्द
प्रयागराज, 06 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 319 के तहत प्रदत्त शक्ति “असाधारण“ है, जिसका प्रयोग संयम और सावधानी से किया जाना चाहिए। इस धारा के अंतर्गत अतिरिक्त अभियुक्तों को तलब करने की निचली अदालत की शक्ति मुकदमे के दौरान उसके समक्ष प्रस्तुत साक्ष्यों तक ही सीमित है।
केवल विवेचना के दौरान एकत्रित सामग्री के आधार पर इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति समीर जैन की एकल पीठ ने चंदौली निवासी राम नारायण, राम दारोगा व दो अन्य बाबूलाल दारोगा व समीर उर्फ श्रवण यादव को आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 323, 504, 506 और 427 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए तलब किए जाने संबंधी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर दिया है।
मुकदमे से जुड़े तथ्य यह हैं कि याचीगण और छह अन्य के खिलाफ प्रतिपक्षी तंचू की पत्नी और उसके दो बेटों पर हमला करने का आरोप था। हालांकि, विवेचना अधिकारी ने याचीगण के विरुद्ध आरोप-पत्र दायर नहीं किया, क्योंकि उनकी संलिप्तता के ठोस सबूत नहीं मिले थे।
अधिवक्ता ने कहा कि मामले की प्राथमिकी सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत दायर आवेदन के माध्यम से दो महीने बाद दर्ज की गई थी। 12 नवम्बर 2010 को घटना बताई गई तथा 12 फरवरी 2011 को एफआइआर लिखी गई। राज्य सरकार और शिकायतकर्ता के वकील ने दलील दी कि गवाहों ने याचीगण का नाम स्पष्ट रूप से बताया है, इसलिए उनकी गवाही पर अविश्वास नहीं किया जा सकता। कानून में यह स्थापित है कि धारा 319 सीआरपीसी के तहत किसी अभियुक्त को समन करते समय, निचली अदालत को केवल अपने समक्ष दर्ज गवाहों के बयानों पर ही विचार करना चाहिए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 319 से यह स्पष्ट है कि निचली अदालत को साक्ष्य के आधार पर किसी ऐसे व्यक्ति को जो मामले में अभियुक्त नहीं है, मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाने का अधिकार है।’साक्ष्य’ शब्द महत्वपूर्ण है। ’साक्ष्य’ शब्द मुकदमे के दौरान दर्ज साक्ष्य तक सीमित है। निचली अदालत को अपने समक्ष प्रस्तुत गवाहों के बयानों पर विचार करना चाहिए। उसे केवल आरोप-पत्र या केस डायरी में उपलब्ध सामग्री पर भरोसा नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने कहा, निचली अदालत ने गवाहों के बयानों पर भरोसा तो किया, लेकिन वह प्राथमिकी दर्ज करने में देरी, गवाही की गुणवत्ता अथवा यह तय करने में विफल रही कि क्या वे याची के खिलाफ प्रथम दृष्टया से भी अधिक मजबूत मामला साबित करते हैं। कोर्ट ने यह पाते हुए कि निचली अदालत ने मामले के तथ्यों का उचित विश्लेषण किए बिना गवाहों के बयानों को ’आंख बंद कर स्वीकार’ कर लिया, विवादित आदेश विधि विरुद्ध मान रद्द कर दिया।
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
