
मंदसौर, 11 सितंबर (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के नयापुरा रोड स्थित रुद्राक्ष माहेश्वरी भवन में चल रही सप्तदिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ सोपान पर व्यासपीठ से प्रवचन करते हुए पूज्य आचार्य हरेश भाई जोशी (अहमदाबाद) ने धर्म, विज्ञान और जीवन साधना के गहन संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म केवल आस्था नहीं, बल्कि विज्ञान का अद्भुत संगम है। श्रद्धालुओं से आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति अपने जीवन में परमात्मा के लिए समय अवश्य निकाले, क्योंकि यही सच्चा भागवत आश्रय है।
आचार्य श्री ने कहा कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए हर व्यक्ति को अपने-अपने धर्म का पालन करना चाहिए। पिता, पुत्र, गुरु, पत्नी और ससुर सभी यदि स्वधर्म का पालन करें तो जीवन सार्थक हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार पहले 25 वर्ष विद्याध्ययन, उसके बाद 50 वर्ष तक धनार्जन, 51 से 75 वर्ष तक पुण्यार्जन और अंतिम अवस्था परमात्मा के आश्रय में व्यतीत करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि परमात्मा इतने दयालु हैं कि यदि कोई उनके किसी भक्त के चरणों की शरण में भी आ जाए, तो उसका भी कल्याण हो जाता है।
रामायण का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि भगवान राम धर्म के, लक्ष्मण कामना के, शत्रुघ्न अर्थ के और भरत मोक्ष के प्रतीक हैं। धर्म के साथ कामना हो सकती है, लेकिन वह योग्य होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि परमात्मा से सदैव यही प्रार्थना करनी चाहिए कि जीवन और कुल में पुण्य की कमी न हो, बाकी सभी कामनाएँ स्वत: पूरी हो जाती हैं। आचार्य श्री ने कहा कि भक्ति में इतनी शक्ति है कि भगवान भी भक्त के अधीन हो जाते हैं।
मीराबाई, नर्सिंग मेहता और कर्मा देवी जैसे भक्तों की महिमा परमात्मा से कम नहीं है। ठाकुर जी चारों धाम में अलग-अलग रूपों में रहते हैं—बद्रीनाथ में विश्राम करते हैं, जगन्नाथपुरी में भोजन करते हैं, रामेश्वरम में भजन करते हैं और द्वारिका में राज व्यवस्था संभालते हैं। उन्होंने संस्कृत को भाषाओं की महारानी, हिंदी को बहुरानी और अंग्रेजी को नोकरानी बताया। कहा कि बहुरानी यानी हिंदी के चिंतन से विचारों की गहराई मिलती है, जबकि अंग्रेजी केवल व्यवहारिक भाषा है। हर व्यक्ति को अपनी भाषा और भूषा पर गर्व होना चाहिए।
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(Udaipur Kiran) / अशोक झलोया
