Madhya Pradesh

अभिमान को छोड़कर जीवन को सरल बनाएं – संत राजरत्न महाराज

अभिमान को छोड़कर जीवन को सरल बनायें - संत श्री राजरत्नजी

मंदसौर, 22 जुलाई (Udaipur Kiran) । मानव जीवन में यदि अभिमान है तो हमें देव, गुरू धर्म की कृपा नहीं मिल पायेगी। अभिमान को छोड़कर ही हम देव गुरू धर्म की कृपा प्राप्त कर सकते है। भक्ताम्बर के रचचिता आचार्य मानतुंगसूरिजी ने भक्ताम्बर की रचना के पूर्व अपना पूरा अभिमान छोड़ा और उसके बाद प्रभु के प्रति समर्पण भाव प्रकट करते हुए भक्ताम्बर की 44 गाथाओं की रचना की। जीवन में हमें भी कुछ बड़ा करना है तो अभिमान छोड़े, विनय को अपनाये।

उक्त उद्गार प.पू. जैन संत राजरत्न विजयी म.सा. ने चौधरी कॉलोनी स्थित रूपचांद आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में कहे। उन्होंने मंगलवार को आचार्य श्री निपुणरत्नसूरिश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा में आयोजित धर्मसभा में कहा कि भक्ताम्बर की रचना में प्रभु आदिनाथजी की जो स्तुति की गई है वह अद्भूत एवं प्रेरणादायी है। भक्ताम्बर की सभी 44 गाथाओं में 32-32 अक्षर है। आपने कहा कि जीवन में यदि हम घर परिवार से मोह करेंगे तो हमारा भव बिगड़ जायेगा लेकिन यदि वह मोह हमें ईश्वर एवं गुरू के प्रति हो गय तो हम भव सागर से तिर जायेंगे। इसलिये जीवन में मोह करो, घर परिवार, भौतिक पदार्थों से नहीं बल्कि ईश्वर से करो।

भावपूर्वक विवेक पूर्वक नमन करो- संतश्री ने कहा कि जो भी व्यक्ति भावपूर्वक, विवेकपूर्वक नमन करता है उसे देव, गुरू धर्म की कृपा मिलती है। जब तक ऋषभदेव के पुत्र बाहुबलि में अहंकार की भावना थी उन्हें केवल ज्ञान नहीं मिला लेकिन अपनी बहन के द्वारा प्रतिबंध मिलने पर उनका विवेक जागृत हुआ और उन्होनें अपने 98 भाई जो कि आयु में छोटे थे लेकिन संयम जीवन ग्रण कर चुके थे उन्हें नमन करने का विचार कर पहला पग आगे बड़ाया और उन्हें केवल ज्ञान मिल गया इसलिये अभिमान में नहीं विवेक पूर्वक भाव पूर्वक नमन करे उसी से जीवन में ज्ञान की प्राप्ति होगी। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धमार्लुजन उपस्थित थे। प्रभावना निर्मल कुमार संदीप डांगी परिवार के द्वारा वितरित की गई।

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(Udaipur Kiran) / अशोक झलोया

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