Madhya Pradesh

(समीक्षा) मप्र के लिए कर्ज के सहारे विकास का सपना कितना अच्‍छा, जब आत्‍मनिर्भरता के ‘स्‍व’ अवसर उपलब्‍ध हैं!

मप्र पर बढ‍़ता कर्ज

-डॉ. मयंक चतुर्वेदी

मध्य प्रदेश सरकार एक बार फिर 5200 करोड़ रुपये का नया कर्ज लेने जा रही है। आज यह फैसला इसलिए चर्चा में है क्योंकि भाईदूज के अवसर पर ‘लाड़ली बहना योजना’ के तहत 1.27 करोड़ महिलाओं के खातों में राशि समय पर नहीं पहुंच पाई थी। इसके बाद सरकार ने प्रदेश स्थापना दिवस पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए ऋण लेने का रास्ता चुना है। दूसरी ओर यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है, जब आर्थ‍िक आंकड़ों में ‘राजस्व अधिशेष’ राज्य है। वैसे यह ऋण केंद्र सरकार की स्वीकृति के तहत आरबीआई से उत्पादक योजनाओं सिंचाई, बिजली, सड़क और सामुदायिक विकास के लिए लिया जा रहा है। परंतु सवाल उठ रहा है कि जब राजस्व अधिशेष मौजूद है, तब कर्ज लेने की मजबूरी क्यों?

आप देखेंगे कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा ऋण लेने की रफ्तार पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी है। मार्च 2024 तक राज्य पर 3.7 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जो अब 4.8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यानी केवल एक वर्ष में राज्य का कर्ज लगभग 1 लाख करोड़ रुपये बढ़ गया। आरबीआई के अनुसार यह देश के कुल राज्यीय कर्ज का लगभग 5 प्रतिशत है। वित्‍त वर्ष 2024-25 की शुरुआत से अब तक राज्य सरकार ने करीब 47,000 करोड़ रुपये का नया कर्ज लिया है। जनवरी 2025 में ही दो चरणों में 5,000 करोड़ रुपये का ऋण जारी किया गया था, जबकि सितंबर-अक्टूबर में तीन बार में 7,000 करोड़ के करीब कर्ज लिए गए।इन सभी ऋणों की औसतन अवधि 18 से 22 वर्ष है, यानी इनके प्रभाव का दायरा दो दशक से भी अधिक रहेगा।

देखा जाए तो लगातार बढ़ते ऋण की यह प्रवृत्‍त‍ि राज्य की आर्थिक नीति में दीर्घकालिक निर्भरता का संकेत देती है। वित्‍तीय अनुशासन के लिहाज से यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि ब्याज भुगतान का बोझ हर साल बढ़ता जा रहा है। इस वित्‍त वर्ष 2025-26 में केवल ब्याज अदायगी के लिए 29,000 करोड़ रुपये रखे गए हैं जो कई प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं के वार्षिक बजट से अधिक है।

यहां सरकार के अपने तर्क हैं, उसका कहना है कि 2023-24 में उसे 12,487 करोड़ रुपये का राजस्व अधिशेष प्राप्त हुआ और 2024-25 में भी आय-व्यय का अंतर 1,025 करोड़ रुपये सकारात्मक है। सारे ऋण राजकोषीय उत्तरदायित्व बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम के दायरे में हैं और कर्ज की सीमा सकल घरेलू उत्पाद के तीन प्रतिशत से अधिक नहीं है। पर इस सब के बीच हमें यह ध्‍यान रखना चाहिए कि मप्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और भाजपा, भारतीय ज्ञान और परंपराओं की आग्रही है। स्‍वयं मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने और इनसे पहले सीएम रहते हुए शिवराज सिंह चौहान ने अनेक भारतीय कला-संस्‍कृति और परंपराओं के क्षेत्र में नवाचार किए हैं। मुख्‍यमंत्री डॉ. यादव तो अभी भी अपनी गौरवपूर्ण जड़ों की ओर लाैटने वाली ज्ञान शाखाओं को मजबूत करने लगातार बल दे रहे हैं, ऐसे में यही हमारी परंपरा कहती है कि ऋण आपातकालीन उपाय है, स्थायी साधन नहीं। इसलिए ऋण लेकर घी पीना कभी अच्‍छा नहीं माना गया। तब परंपरा में कही गई ये बात वर्तमान सरकार के आचरण में दिखे, यह आवश्‍यक हो जाता है।

अब राजस्व अधिशेष होने के बावजूद लगातार ऋण लेना यह दर्शाता है कि पूंजीगत व्यय योजनाओं का दायरा इतना बढ़ा है कि मौजूदा संसाधन पर्याप्त नहीं रह गए हैं। हालांकि अधिशेष का होना यह नहीं दर्शाता कि कर्ज की आवश्यकता खत्म हो जाती है। जहां सरकार को लगता है कि उसे बाहर से विकास के लिए कर्ज ले लेना चाहिए, वह ले सकती है, फिलहाल मप्र सरकार इसी दिशा में हमें आज आगे बढ़ती हुई दिखती भी है, पर सवाल यह है कि जब राज्य के पास पर्याप्त कर और गैर-कर राजस्व स्रोत हैं, तब उनकी वसूली या प्रबंधन में कमी क्यों दिखे? मप्र सरकार के पास आज आय के मुख्‍य तीन स्रोत मौजूद हैं, कर राजस्व, गैर-कर राजस्व और केंद्र से प्राप्त हिस्सा। कर राजस्व में जीएसटी, वैट, आबकारी, परिवहन कर और स्टाम्प शुल्क का योगदान प्रमुख है। गैर-कर स्रोतों में खनन, वन उत्पाद और सरकारी सेवाओं पर लगने वाली फीस शामिल है। इसके अलावा केंद्र सरकार से मिलने वाले करों में हिस्सा और अनुदान है।

अब यदि सरकार अपने संसाधन प्रबंधन में सुधार लाती है, तो बिना नया कर्ज लिए सालाना 17,000 से 22,000 करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त आय कर सकती है। खनिज और वन संपदा के मूल्य संवर्धन से 6,000 करोड़, जीएसटी व वैट में सुधार से 4,500 करोड़, पर्यटन और औद्योगिक निवेश से 5,000 करोड़, सरकारी संपत्तियों के व्यावसायिक दोहन से 2000 करोड़, आबकारी व बिजली वितरण में दक्षता बढ़ाकर 2,000 करोड़ और पुरानी वसूली से 3000 करोड़ रुपये तक की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। (यहां दिया गया यह आंकड़ा व्‍यापक आर्थ‍िक अध्‍ययन के बाद दिया जा रहा है)

इसके अतिरिक्‍त भी प्रयास किए जा सकते हैं, जैसा कि अभी ध्‍यान में आया, डबरा का सेंटपीटर स्‍कूल इसे दो करोड़ से अधिक की वसूली का नोटिस दिया गया था, पर फिर शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने बिना जुर्माना वसूले ही मान्‍यता दे दी, इस तरह से राजस्‍व का सीधे तौर पर 2 करोड़ का नुकसान हुआ, अब प्रदेश में ऐसे कितने विद्यालय एवं अन्‍य विभागीय संस्‍थान होंगे, जिनसे वसूली की जानी है, यदि ये ही हो जाए तो कई करोड़ रुपए का राजस्‍व सरकार के पास सहज ही आ जाएगा। वहीं, सरकार कृषि, उद्योग, सेवा और पर्यटन जैसे मजबूत आधारों में आय बढ़ाने पर ध्यान दे सकती है।

इस तरह से यदि कुल अतिरिक्‍त राजस्‍व का आंकड़ा देखें तो यह 40000 करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। ऐसे में कहना यही है कि मध्‍य प्रदेश की डॉ. मोहन यादव की भाजपा सरकार यदि इन बताए गए उपायों पर गंभीरता से ध्‍यान दे तो यह राज्‍य के लिए हर स्‍थ‍िति में अच्‍छा है।

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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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