Chhattisgarh

धमतरी शहर में 106 साल से मनाया जा रहा रथयात्रा महोत्सव

व्याख्यान सुनने उमड़ी शहरवासियों की भीड़।
अग्रसेन भवन में रथयात्रा पर व्याख्यान देते हुए लेप्रोस्कोपिक सर्जन डा रोशन उपाध्याय।

धमतरी, 25 जून (Udaipur Kiran) । धमतरी शहर में 106 साल से रथयात्रा महोत्सव मनाया जा रहा है। श्री जगदीश मंदिर में रोजाना पारंपरिक धार्मिक अनुष्ठान हो रहे हैं। इस बीच बुधवार रात 25 जून काे शहर के अग्रसेन भवन में रथयात्रा पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। बाबा परिवार द्वारा पहली बार शहर में रथयात्रा के महत्व और उनके स्वरूप को लेकर यह व्याख्यान आयोजित किया गया। शहर के लेप्रोस्कोपिक सर्जन डा रोशन उपाध्याय ने भगवान जगन्नाथ के मूल स्वरूप अपूर्ण क्यों, क्यों पड़ते हैं बीमार, रथ कहां से गुजरता है, भगवान ननिहाल में कितने दिन रूकते हैं सहित अन्य विषयों को लेकर व्याख्यान दिए।

डा रोशन उपाध्याय ने बताया कि भगवान कृष्ण ब्रज लीला, मथुरा लीला पूरी करने के बाद द्वारिकाधीश में द्वारिका लीला करने आते हैं। यहां भगवान की रानियों ने देखा कि भगवान नींद में लंबी-लंबी सांसें ले रहे हैं। श्रीमुख से आवाज निकल रही है। निंद्रा अवस्था में हां वृंदा, हां ब्रज, हां गोवर्धन, हां ललिते, हां यमुना, हां राधा का नाम निकलता है। रानियों को लगा कि वे प्रभु की इतनी सेवा करती हैं, लेकिन प्रभु सबसे ज्यादा राधाजी का स्मरण कर रहे हैं। इसका कारण पूछने रोहिणी माता के पास जाती हैं। रोहिणी माता ने कहा कि मैं ब्रज लीला के बारे में तो बता दूंगी, लेकिन इस कथा के बीच भगवान कृष्ण व बलराम न आए। वे आ गए तो विचलित हो जाएंगे। माता रोहिणी ने कथा सुनाना प्रारंभ किया। कुछ ही देर में कृष्ण एवं बलराम पहुंच गए। सुभद्रा ने अंदर जाने से रोका। इससे भगवान को संदेह हुआ। वे बाहर से ही अपनी सूक्ष्म शक्ति से ब्रज लीलाओं को सुनने लगे। कथा सुन श्रीकृष्ण, बलराम व सुभद्रा के हृदय में ब्रज के प्रति अद्भूत भाव उत्पन्न हुआ। इस भाव में श्रीकृष्ण के पैर, हाथ सिकुडऩे लगे। कथा में ऐसे भाव विभोर हुए कि मूर्ति के समान जड़ प्रतीत होने लगे। ध्यान पूर्वक देखने पर भी भगवान के हाथ-पैर दिखाई नहीं देते। इसी वक्त देवमुनि नारद पहुंचते हैं। भगवान के इस रूप को देखकर आश्चर्यचकित हुए और निहारने लगते हैं। नारदजी ने कहा कि हे प्रभु ये आपका कैसा रूप है। मेरी इच्छा है कि मैंने आज जो आपका रूप देखा वह रूप आपके सभी भक्त देखें। यह रूप चिरकाल तक देखने को मिले। इस रूप पर आप पृथ्वी पर वास करें। भगवान ने कहा कि राजा इंद्रद्युम्न अपनी पत्नी गुंडिचा के घर संतान के लिए तप कर रही हैं। उन्हीं के घर दारून विग्रह के रूप में जन्म होगा। तीन स्वरूप में निर्माण होगा। एक उनका स्वयं, दूसरा बलराम और तीसरा बहन सुभद्रा। इसी दौरान भगवान विश्वकर्मा बढ़ई के रूप में पहुंचते हैं।

उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि राजा ने बढ़ई से भगवान की प्रतिमा बनाने के लिए कहा। बढ़ई ने शर्त रखा कि मूर्ति बनाने में 21 दिन का समय लगेगा, लेकिन इस बीच कोई भी मूर्ति निर्माण कक्ष में न आए। यदि कोई पहुंच गया तो मूर्ति उसी हालत में छोडक़र चले जाऊंगा। मूर्ति का निर्माण बढ़ई ने शुरू किया। अचानक 14 वें दिन से हलचल बंद हो गई तब रानी बलात प्रवेश करते हुए भीतर चली जाती हैं। इससे भगवान विश्वकर्मा क्रोधित होकर चले जाते हैं। तभी अधूरे हाथ, अधूरे पैर, गोल आंखें देखकर रोने लगती है। तब भगवान प्रकट होते हैं और गुंडिचा से कहते हैं कि यह मेरा कलिकाल का पूर्ण स्वरूप है। ठीक भाव से देखोगी तो यहीं मेरा पूर्ण स्वरूप है।

व्याख्यान सुनने भारी संख्या में शहर व ग्रामीण क्षेत्रों से लोग पहुंचे थे। अंत में सभी को खिचड़ी का प्रसादी वितरण किया गया।

(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा

Most Popular

To Top