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राजस्थान हाईकोर्ट : जबरन शादी के दावे पर याचिकाकर्ता पर 25 हजार का जुर्माना

jodhpur

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज

जोधपुर, 30 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। जस्टिस विनीत कुमार माथुर और जस्टिस बिपिन गुप्ता की खंडपीठ ने नागौर के खींवसर में पांचोड़ी निवासी 25 वर्षीय युवक की याचिका पर यह फैसला सुनाया। इस युवक ने दावा किया था कि उसने फलोदी जिले के मतोड़ा थाना इलाके की एक महिला से शादी की है और महिला के माता-पिता ने उसे गैरकानूनी तरीके से अपने पास बंदी बना रखा है।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने महिला के साथ विवाह किया है और इसके प्रमाण के तौर पर आर्य समाज का विवाह प्रमाणपत्र भी कोर्ट में प्रस्तुत किया गया था। उसका कहना था कि शादी के बाद महिला को उसके माता-पिता ले गए और उसे याचिकाकर्ता के साथ रहने की अनुमति नहीं दी जा रही है। याचिका में राज्य सरकार, फलोदी पुलिस अधीक्षक, मतोड़ा थानाधिकारी और महिला के माता-पिता को प्रतिवादी बनाया गया था। प्रतिवादियों की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता दीपक चौधरी, मतोड़ा थानाधिकारी अमानाराम और मनीषा चौधरी ने पक्ष रखा। कोर्ट के निर्देश पर पुलिस ने 17 अक्टूबर को महिला को अदालत में पेश किया। न्यायाधीशों ने महिला से विस्तार से बातचीत की और उसकी इच्छा जानने का प्रयास किया। कोर्ट ने पाया कि महिला वयस्क है और वह अपने निर्णय लेने में सक्षम है।

महिला ने कोर्ट में बयां की हकीकत

जब कोर्ट ने महिला से बात की, तो उसने चौंकाने वाला खुलासा किया। महिला ने बताया कि चार लोग उसे जबरन उठाकर ले गए और जबरदस्ती याचिकाकर्ता से शादी करवाई गई। महिला ने अदालत के सामने साफ शब्दों में कहा कि वह याचिकाकर्ता के साथ रहने को तैयार नहीं है और अपनी मर्जी से अपने माता-पिता के साथ खुशी-खुशी रह रही है। महिला ने स्पष्ट किया कि उसके माता-पिता ने उसे जबरन अपने पास नहीं रोका है, बल्कि वह स्वेच्छा से उनके साथ रहना चाहती है।

हेबियस कॉर्पस याचिका का आधार नहीं

महिला के बयान को सुनने के बाद कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि महिला अपने माता-पिता की गैरकानूनी हिरासत में नहीं है। न्यायालय ने पाया कि महिला अपनी स्वतंत्र इच्छा से अपने माता-पिता के साथ रह रही है और वह याचिकाकर्ता के साथ जाना नहीं चाहती। महिला की इच्छा स्पष्ट होने के बाद कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि हेबियस कॉर्पस याचिका का कोई आधार नहीं बनता। इस पर हेबियस कॉर्पस याचिका को खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा जमा की गई 25 हजार रुपये की राशि जब्त कर ली। कोर्ट ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया कि इस जब्त की गई राशि को राजस्थान विधिक सेवा प्राधिकरण के बैंक खाते में ट्रांसफर किया जाए, जो कानूनी सहायता सेवाओं के लिए उपयोग की जाएगी।

(Udaipur Kiran) / सतीश

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