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राजस्थान हाईकोर्ट : चिकित्सकों को आरम्भिक अस्थाई नियुक्ति तिथि से मिलेंगे सभी सेवा परिलाभ

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जोधपुर, 26 जुलाई (Udaipur Kiran) । नियमित चयन से पूर्व की अस्थायी व संविदा सेवा अवधि को सभी प्रयोजनार्थ सेवा माने जाने के एकलपीठ के निर्णय को सही ठहराते हुए राजस्थान हाइकोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार की सभी विशेष अपीलों को ख़ारिज कर दिया है। हाइकोर्ट खंडपीठ के निर्णय के पश्चात अब रिट याचिकाकर्ताओं डॉ. युद्धवीर सिंह राठौड़ सहित अन्य चिकित्सकों को आरम्भिक अस्थाई नियुक्ति तिथि से समस्त सेवा परिलाभ मिल सकेंगे।

राजकीय सेवारत चिकित्सक डॉ. युद्धवीर सिंह, डॉ. वसीम अहमद, डॉ. देवेंद्र सिंह राव सहित अन्य चिकित्सकों की ओर से अधिवक्ता यशपाल खि़लेरी ने अलग-अलग रिट याचिकाएं पेश कर बताया कि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग राजस्थान सरकार द्वारा सार्वजनिक विज्ञप्ति प्रकाशित कर मेरिटनुसार और रोस्टर का पालन करते हुए याचीगण का आरंभिक चयन चिकित्सा अधिकारी के रिक्त पदों पर 22 जुलाई 1986 को किया गया था, तब से वे चिकित्सा विभाग में लगातार कार्यरत हैं। आरंभिक चयन चिकित्सा विभाग में चिकित्सा अधिकारी के स्वीकृत रिक्त पदों पर किया गया था लेकिन आरंभिक चयन के अनुसरण में जॉइन करने के पश्चात राजस्थान लोक सेवा आयोग अजमेर द्वारा चिकित्सा अधिकारी पद पर नियमित नियुक्ति के लिए अनुशंषा करने के पश्चात राज्य सरकार ने 24 मार्च 1992 को नियुक्ति आदेश जारी कर उनका पुन: चयन कर लिया गया तथा याचिकाकर्ताओं को पूर्व पद पर यथावत रखते हुए उसी स्थान पर जॉइनिंग दे दी गई। इस प्रकार याचीगण बिना किसी ब्रेक के आरंभिक नियुक्ति दिनांक से चिकित्सा विभाग के राजकीय चिकित्सालयो में सेवारत है और तदनुसार ही आरंभिक नियुक्ति दिनांक से उन्हें वेतनवृद्धि इत्यादि परिलाभ मिल रहे हैं लेकिन राज्य सरकार के चिकित्सा विभाग द्वारा याचिकाकर्ताओं द्वारा आरपीएससी अजमेर से नए चयन आदेश से पूर्व में लगभग छह वर्ष की सेवा अवधि को सेवा के सभी प्रयोजनार्थ गणना नहीं किये जाने से पीडि़त होकर रिट याचिकाएं दायर की गई थी।

याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि चिकित्सा सेवा नियम, 1963 में अस्थायी नियुक्ति का प्रावधान किया हुआ है और राजस्थान सेवा नियम, 1951 और पेंशन नियम, 1996 में अस्थायी सेवा को क्वालीफाइंग/अर्हक सेवा के लिए योग्य माना गया है। हाइकोर्ट एकलपीठ ने रिट याचिकाएं स्वीकारते हुए याचिकाकर्ताओं को सेवा निरन्तरता का लाभ देते हुए राज्य सरकार के चिकित्सा विभाग को आदेशित किया कि याचिकाकर्ता चिकित्सकों द्वारा सेवा निरन्तरता का हकदार मानते हुए पूर्व में की गई सेवा अवधि को (आरंभिक नियुक्ति तिथि से) सभी प्रयोजनार्थ गणना योग्य मानी जाएगी।

विशेष अपीलों के जरिये दी चुनौती :

आरंभिक नियुक्ति तिथि से सेवा अवधि की गणना किए जाने के एकलपीठ आदेशों को राज्य सरकार ने हाइकोर्ट की खंडपीठ में विशेष अपीलों के जरिये चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओ की ओर से बताया गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में जग्गो प्रकरण में महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए यह प्रतिपादित किया है कि लंबे समय तक लगातार बिना व्यवधान के कार्यरत होने पर यह माना जाएगा कि कार्मिक स्वीकृत पद पर कार्यरत हैं और वह सेवा नियमितीकरण का हकदार हैं। साथ ही चिकित्सा विभाग स्वयं ने ही परिपत्र जारी कर आदेशित किया कि ऐसे अस्थायी कार्यरत अभ्यर्थी जिनका चयन राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा किया जा चुका है और लगातार कार्यरत हैं, वह सभी आरंभिक नियुक्ति से ही नियमित माने जाएंगे।

ऐसे में राज्य सरकार स्वयं के आदेशों से विपरीत नहीं जा सकती हैं। अंतिम बहस के पश्चात हाइकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधिपति चंद्रशेखर व न्यायाधिपति संदीप शाह की खंडपीठ ने हाइकोर्ट एकलपीठ के दिए निर्णय को विधिसम्मत सही मानते हुए रिपोर्टेबल निर्णय से राज्य सरकार की सभी विशेष अपीलों को सारहीन मानते हुए ख़ारिज करते हुए यह महत्वपूर्ण व्यवस्था दी कि आरंभिक नियुक्ति रिक्त स्वीकृत पदों पर विज्ञापन जारी कर नियमित चयन प्रक्रिया के अनुरूप स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा की गई है तो रिट याचिकाकर्ता नियमित वेतनमान, वेतनवृद्धि एवं अन्य सभी भत्ते आरम्भिक नियुक्ति दिनांक से प्राप्त करने के हकदार हैं।

(Udaipur Kiran) / सतीश

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