
अनूपपुर, 7 सितंबर (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश में विधायकों के वेतन और भत्तों में भारी बढ़ोतरी की तैयारी ने एक बार फिर सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विधानसभा सदस्य समिति ने राज्य सरकार को सिफारिश भेजी है कि विधायकों का वेतन और भत्ता 45% तक बढ़ाया जाए। यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो एक विधायक की मासिक वेतन लगभग ₹1.60 लाख तक पहुंच जाएगी। साथ ही पूर्व विधायकों की पेंशन बढ़ाने का सुझाव भी दिया गया है।
भारतीय गणवार्ता (भगवा पार्टी) के अनूपपुर जिला अध्यक्ष कन्हैया लाल मिश्रा ने रविवार को इस पर कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि जनप्रतिनिधियों को उनके कार्य और दायित्व के अनुरूप उचित वेतन मिलना चाहिए, इसमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन जब विधायकों की आय बढ़ाने वाले विधेयक बिना किसी बहस और देरी के तुरंत पास हो जाते हैं, तो वही सुविधा संविदा कर्मचारियों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं और मेहनतकश मजदूरों को क्यों नहीं दी जाती?
उन्होंने कहा कि प्रदेश की जमीनी हकीकत यह है कि संविदा कर्मचारी वर्षों से नियमितीकरण और वेतन वृद्धि की मांग कर रहे हैं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाएं न्यूनतम मानदेय पर कठिन परिश्रम कर रही हैं, और मजदूर वर्ग आज भी दिहाड़ी मजदूरी पर जीवन यापन को मजबूर है। शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य और श्रम क्षेत्र से जुड़े यही लोग सरकार की योजनाओं को धरातल पर उतारते हैं, लेकिन उनकी मेहनत का मूल्य तय करने में हमेशा लापरवाही बरती जाती है। विधायकों को पहले से ही भत्ते, गाड़ी, मकान और तमाम सुविधाएं प्राप्त हैं। ऐसे में उनके वेतन को प्राथमिकता देना और जनता के असली सेवकों को अनदेखा करना लोकतंत्र में असंतुलन को दर्शाता है।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब अपने वेतन वृद्धि पर सहमति जताने में विधायकों को मिनटों का समय नहीं लगता, तो गरीब मजदूरों, आंगनवाड़ी बहनों और संविदा कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान के लिए महीनों और सालों का इंतजार क्यों कराया जाता है?
भगवा पार्टी के जिला अध्यक्ष ने चेतावनी दी कि लोकतंत्र तभी सार्थक होगा, जब सत्ता की सुविधाओं और जनता के वास्तविक सेवकों की मेहनत के मूल्य को समान संवेदनशीलता से देखा जाएगा। सरकार और विधायकों को आत्ममंथन करते हुए आमजन के पक्ष में ठोस निर्णय लेने होंगे।
(Udaipur Kiran) / राजेश शुक्ला
