Uttar Pradesh

रामनगर की विश्वप्रसिद्ध धनुष यज्ञ की रामलीला में उमड़े लीलाप्रेमी,राम और सीता के विवाह की तैयारी

Ramnagar's world famous Dhanush Yagya Ramlila

—भगवान परशुराम और लक्ष्मण के बीच संवाद युवा श्रद्धालुओं को भाया

वाराणसी,11 सितम्बर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद के उपनगर रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला में गुरूवार शाम धनुष यज्ञ की लीला देखने के लिए श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। रामलीला के प्रसंग में मिथिला नरेश राजा जनक के आमंत्रण पर मुनि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को लेकर रंगभूमि पहुंचे। उन्हें आमंत्रित राजाओं में सबसे उच्च स्थान दिया गया। यह देख अन्य राजा आश्चर्यचकित हो गए।

राजा जनक रंगभूमि में सभी को अपना प्रण बताते हैं। इसके बाद आमंत्रित सभी राजा भगवान शिव का धनुष उठाने का प्रयास करते हैं लेकिन कोई उसे हिला भी नहीं सका। तब राजा जनक विचलित हो गये । उन्होंने कहा कि यदि मैं जानता कि पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है तो मैं यह प्रण कभी न करता। यह सुनकर राजकुमार लक्ष्मण क्रोधित हो उठते हैं। कहते हैं कि चाहूं तो पृथ्वी को घड़े की भांति उठा कर चुटकी में फोड़ दूं, यह धनुष क्या है। उनको क्रोधित देख मुनि विश्वामित्र राम को धनुष तोड़ने का संकेत देते हैं। गुरु को प्रणाम करके राम धनुष को उठा लेते हैं। उनके स्पर्श मात्र से प्रत्यंचा टूट जाती है। राम चरित मानस की चौपाइयां गूंजती है, लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें, काहुं न लखा देख सबु ठाढ़ें। तेहि छन राम मध्य धनु तोरा, भरे भुवन धुनि घोर कठोरा… अर्थात लेते, चढ़ाते और जोर से खींचते हुए किसी ने नहीं लखा (अर्थात ये तीनों काम इतनी फुर्ती से हुए कि धनुष को कब उठाया, कब चढ़ाया और कब खींचा, इसका किसी को पता नहीं लगा), सबने श्रीरामजी को (धनुष खींचे) खड़े देखा। इसके बाद जानकी श्रीराम के गले में जयमाल डाल देती हैं। इधर,शिव धनुष टूटने का समाचार पाकर भगवान परशुराम क्रोध से व्याकुल होकर जनक के पास पहुंचते हैं और उन्हें भला-बुरा कहने लगते हैं। यह देखकर लक्ष्मण उनसे उलझ जाते हैं और कठोर वाणी बोलने लगते हैं। जिस पर राम हस्तक्षेप करते हैं और उनके क्रोध को शांत करते हैं। परशुराम अपना धनुष देकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने को कहते हैं। राम के ऐसा करते ही परशुराम को विश्वास हो जाता है कि राम के रूप में पृथ्वी पर भगवान का अवतार हो चुका है। वह राम की जय जयकार करते हुए उनसे क्षमा मांगकर लौट जाते हैं। आकाश में देवगणों ने पुष्प वर्षा कर अलौकिक क्षण का आनंद उठाया। विश्वामित्र की आज्ञा से जनक अपने दूत से राजा दशरथ को बरात लेकर आने का निमंत्रण भेजते हैं। जनकपुर में राम और सीता के विवाह की तैयारी शुरू हो जाती है। यहीं पर आरती के बाद लीला को विश्राम दिया जाता है।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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