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पुलिस ड्राइवरों को वेतनमान संबंधी याचिका पर हाईकोर्ट से मिली राहत

jodhpur

जोधपुर, 09 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने नागौर और डीडवाना-कुचामन सहित विभिन्न जिलों में कार्यरत 18 पुलिस कांस्टेबल (ड्राइवरों) की वेतनमान संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें राहत दी है। जस्टिस मुन्नुरी लक्ष्मण की कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता अपने वेतनमान संबंधी अधिकारों को लेकर राज्य सरकार और पुलिस मुख्यालय को अर्जी दे सकते हैं, जिस पर अधिकारी छह सप्ताह के भीतर निर्णय करेंगे। गौरतलब है कि ऐसे ही कई और मामले प्रदेश के कई जिलों में भी हैं।

दरअसल, मामला नागौर, डीडवाना-कुचामन, मेड़ता रोड, डेगाना, मूंडवा और परबतसर सहित अन्य स्थानों पर पदस्थापित 18 पुलिस ड्राइवरों का है। इनमें प्रतापसिंह पुत्र हरीसिंह, रामकिशोर पुत्र रामचंद्र, मेहराम पुत्र मंगलाराम, रामदेव पुत्र संग्राम, जेठाराम पुत्र पेमाराम, ओमसिंह पुत्र गुलाबसिंह, दयालसिंह पुत्र अमरसिंह, गंगा बिशन पुत्र मोहनराम, बजरंगलाल पुत्र गोपीराम, मंगीलाल पुत्र खेताराम, किशनराम पुत्र अणदाराम, भंवराराम पुत्र भेरूराम, भागीरथ पुत्र तेजाराम, भंवरलाल पुत्र हीरालाल, श्रवण कुमार पुत्र जीवनराम, अमराराम पुत्र रामजस, सुभाष विश्नोई पुत्र साहीराम और हरीराम पुत्र रामदेव शामिल हैं। ये सभी वर्षों से पुलिस के मोटर ट्रांसपोर्ट (एमटी) कैडर में कार्यरत हैं। इन्होंने राज्य सरकार और पुलिस मुख्यालय के खिलाफ यह कहते हुए याचिका दायर की कि उन्हें नौ साल की सेवा के बाद तो प्रमोशनल वेतनमान (हेड कांस्टेबल) दिया गया, लेकिन 18 साल की सेवा पूरी होने पर सब-इंस्पेक्टर स्तर का अगला प्रमोशनल वेतनमान नहीं दिया गया।

याचिकाकर्ताओं के वकील रामदेव पोटलिया ने कोर्ट में तर्क दिया कि इस विषय में पहले भी अमरसिंह बनाम राज्य सरकार मामले में कोर्ट ने साफ कहा था कि एमटी कैडर के कर्मचारियों को उनके प्रमोशनल पद (सब-इंस्पेक्टर) का वेतनमान दिया जाना चाहिए। इसके बावजूद पुलिस मुख्यालय ने इसे लागू नहीं किया। वहीं, राज्य सरकार की ओर से सरकारी वकील ऋतुराज सिंह भाटी ने कोर्ट को बताया कि इस तरह के मामलों पर पहले से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों के निर्णय मौजूद है और प्रशासन उन पर विचार कर रहा है।

जस्टिस मुन्नुरी लक्ष्मण की एकलपीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपने फैसले में कहा याचिकाकर्ता अपने आवेदन संबंधित अधिकारियों को प्रस्तुत करें और अधिकारी उस पर कानून के अनुसार निर्णय लें। यदि याचिकाकर्ता अपनी शिकायत का प्रतिवेदन देते हैं तो पुलिस मुख्यालय और गृह विभाग छह सप्ताह में उसे निस्तारित करें। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश याचिकाकर्ताओं की सेवा शर्तों या पदोन्नति के अधिकारों पर अंतिम निर्णय नहीं है, बल्कि प्रशासनिक स्तर पर समाधान के लिए निर्देश मात्र है।

(Udaipur Kiran) / सतीश

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