
मंडी, 26 जून (Udaipur Kiran) । हिंदी एवं पहाड़ी की वरिष्ठ कवयित्री हरिप्रिया शर्मा ने अनूठे अंदाज में अपना जन्म दिवस मनाया। इस अवसर पर उन्होंने पैलेस कालोनी स्थित अपने आवास में कवि गोष्ठी का आयोजन किया। इस अवसर पर वरिष्ठ कवयित्री एवं कथाकार रेखा वशिष्ठ ने बतौर मुख्यअतिथि शिरकत की। जबिक वरिष्ठ साहित्यकार उपन्यासकार गंगाराम राजी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। वहीं पर जिला भाषा अधिकारी रेवती सैनी विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रही। इस अवसर पर हिंदी, पहाड़ी की कविताओं के अलावा गीत-संगीत की महफिल भी जमी।
कवि गोष्ठी का आग़ाज वरिष्ठ साहित्यकार डा. कमल के प्यासा की कविता लड़की पहाड़ की से हुआ। जिसमें उन्होंने पहाड़ की औरत के जीवन संघर्ष का जीवंत वर्णन कविता के माध्यम से किया। जबकि वरिष्ठ कवयित्री रूपेश्वरी शर्मा ने अपनी कविता रोया होगा आसमां के माध्यम से कहा- रोया होगा आसमां रात भर, तभी तो बिखरे थे आंसू घास पर , हरी गेंहूं की पौध पर पत्तों पर। वहीं पर्यावरण की चिंता को लेकर उनकी कविता – बड़े हो गए हम कर सकते हैं छेद आसमां में सीना छलनी धरती का बिछाते बारूद , पहाड़ के सीने में धारा बदल दे नदी की भी सागर की तो क्या बिसात।
वहीं मंडयाली के कवि डा. राकेश कपूर ने अपनी कविता बजार संस्कृति में कहा-फलदी फुलदी बजार संस्कृति मंझ बदधदे लगीरे रोज हे भाव,माहणू लगीरा सस्ता हुंदा नवीं नवीं चिज्जा रा लगीरा समनियो चाव…। इसके अलावा सरिता हांडा, सुरेंद्र मिश्रा, निर्मला चंदेल ने भी अपनी कविता का पाठ किया। वहीं पर वरिष्ठ कवि अजनबी कविता सुनाते हुए कहा- काेई तो अपना मिले हमराज बनाऊं जिसको, हर चेहरे पे मुखौटा है हाल सुनाऊं किसको। वे आगे कहते हैं- याद आने लगी बहुत माटी की खुशबू अब, भटका हूं राही ,समझाऊं किसको। मुख्यअतिथि रेखा वशिष्ठ ने अपनी कविता लौटना के माध्यम से उम्मीद की लौ जलाते हुए कहा- ऐसे लौटूंगा मैं जैसे नदियों से लौटकर आता है जल बादलों की झारी में जैसे मिट्टी से लौटते हैं रंग फूलों की पंखुड़ियों में…। उनकी दूसरी कविता सज़ा में उन्होंने कहा- सज़ा दो मुझे अक्ष्मय है मेरे अपराध मुझे भेजो उन मरूस्थलों में जहां आग बरसती हो मेरे भीतर दबी है सदियों पुरानी हिम नदियां जिन्हें पिघलने से रोका है मैंने।
उसी प्रकार साहित्यकार मुरारी शर्मा मुरारी शर्मा ने पहाड़ की औरत और पहाड़ की जीवटता पर अपनी कविताएं सुनाई। धान रोपती औरतें कविता में उन्होंने कहा- धान रोपती औरतें धरती की मटमैली देह पर लिख रही है हरियाली की इबारत, उनके हाथों में है धरती को संवारने का हुनर। इसके अलावा आदमी और पहाड़ कविता में कहा- आदमी और पहाड़ दोनों मापते हैं अपने भीतर की गहराई, टूटना नियति है आदमी और पहाड़ की…आदमी भीतर ही भीतर टूटता है, फर्क इतना है आदमी टूटता है पहाड़ तोड़ा जाता है मानवीय लालच और अहंकार के बारूद से…। इसके अलावा जिला भाषा अधिकारी रेवती सैनी ने भी कविता पाठ किया।
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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा
