
जम्मू, 5 सितंबर (Udaipur Kiran) । पितरों की आत्मा की तृप्ति और पितृऋण से मुक्ति के लिए किए जाने वाले श्राद्ध, तर्पण और दान का विशेष महत्व है। पितृपक्ष का आरंभ भाद्रपद पूर्णिमा से होता है और यह अश्विन अमावस्या तक चलता है। इस दौरान अपनी सामर्थ्य के अनुसार पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मणों को भोजन–वस्त्र एवं दक्षिणा दान करना और गरीबों को भोजन कराना अनिवार्य माना जाता है। मान्यता है कि जितना दान किया जाता है, वह पितरों तक पहुँचता है और वे प्रसन्न होकर आरोग्य, धन, संपदा और मोक्ष का आशीर्वाद देते हैं।
श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष, ज्योतिषाचार्य महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि परिजन की मृत्यु जिस तिथि को हुई हो, उसी तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है। जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है, साधु–संतों का द्वादशी को और जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है जिसे सर्वपितृ श्राद्ध कहा जाता है।
इस वर्ष (2025) पितृपक्ष श्राद्ध 7 सितम्बर को पूर्णिमा श्राद्ध से प्रारंभ होकर 21 सितम्बर को सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध तक चलेंगे। महंत रोहित शास्त्री के अनुसार विशेष ख्याल रखना होगा कि 7 सितम्बर को दोपहर 12:57 बजे से चंद्रग्रहण का सूतक प्रारंभ हो रहा है, इसलिए पूर्णिमा श्राद्ध 12:50 बजे तक कर लेना उचित होगा। वहीं, 10 सितम्बर को तृतीया और चतुर्थी दोनों तिथियां एक ही दिन पड़ने के कारण श्राद्ध उसी दिन होंगे।
श्राद्ध विधि में प्रयुक्त सामग्री में पलाश के पत्ते, कुशा, चावल, रोली, सिंदूर, दक्षिणा, फल–मिष्ठान्न, वस्त्र, तिल, तुलसी, जौ, हवन सामग्री, खीर, दूध, घी और दीपक प्रमुख माने गए हैं।
महंत शास्त्री ने यह भी कहा कि यदि किसी कारणवश विधिवत श्राद्ध न हो पाए, तो उस दिन ब्राह्मणों एवं जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या दक्षिणा अर्पित करनी चाहिए। श्रद्धाभाव से किया गया तिलजल या जलांजलि अर्पण भी पितरों को संतुष्ट करता है।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा
