

—ज्ञात अज्ञात पितरों का पिंडदान और श्राद्ध किया गया
—त्रिपिंडी श्राद्ध पूर्वजों के अलावा बीमार व्यक्ति के लिए भी लाभदायी
वाराणसी,19 सितम्बर (Udaipur Kiran) । पितृ पक्ष अब समापन की ओर है। धर्म और मोक्ष की नगरी काशी में सनातनी पूरी श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों का श्राद्ध पिंडदान और तर्पण कर रहे है। पितृपक्ष के त्रयोदशी तिथि पर शुक्रवार को अपने पुरखों का पिंडदान करने के लिए लोग भोर से ही गंगा तट के सिंधिया घाट, दशाश्वमेध घाट, मीरघाट, अस्सी घाट, शिवाला घाट, राजाघाट सहित विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड पर पहुंचने लगे। पूरे श्रद्धा के साथ लोगों ने मुंडन करा कर गंगा नदी और कुंडों में डुबकी लगाकर श्राद्धकर्म और पिंडदान किया। यह क्रम पूरे दिन चलता रहा। त्रयोदशी पर पितरों का पिंडदान और श्राद्ध के लिए लोगों की भीड़ गंगाघाटों पर लगी रही। पिंडदान के दौरान लोगों ने अपने कुल, गोत्र का उल्लेख कर हाथ में गंगा जल लेकर संकल्प लिया और पूर्वाभिमुख होकर कुश, चावल, जौ, तुलसी के पत्ते और सफेद पुष्प को श्राद्धकर्म में शामिल किया। इसके बाद तिल मिश्रित जल की तीन अंजुली जल तर्पण में अर्पित किया। इस दौरान तर्पण आदि में हुई त्रुटि, किसी पितर को तिलांजलि देने में हुई चूक के लिए क्षमा याचना भी की। अपने पितरों से सुखद, सफल जीवन के लिए आशीर्वाद भी मांगा। पिंडदान के बाद गाय, कुत्ता, कौवा को पितरों के प्रिय व्यंजन का भोग लगा कर खिलाया। अपने पूर्वजों को पिंडदान तर्पण करने के बाद लोग घर पहुंचे। बताते चले सनातन धर्म में माना जाता है कि पितृ पक्ष में पूर्वज पंद्रह दिनों तक अपने घरों के आसपास मौजूद रहते है। अपनों से सेवा भाव के साथ श्राद्धकर्म कराने के बाद अमावस्या (पितृ विसर्जन के दिन)पर अपने लोक को वापस लौट जाते है। पितरों के श्राद्धकर्म न करने से सात जन्मों का पुण्य नष्ट हो जाता है। ज्योतिषविद और कर्मकांडी रविन्द्र तिवारी ने ‘ (Udaipur Kiran) ’ को बताया कि हमारे देश भारत में पारिवारिक एवं सामाजिक ताना-बाना बहुत दृढ बनाया गया है। यहां पर लोग न केवल जीवन काल में अपितु मृत्यु के पश्चात भी संबंधों का निर्वहन करते हैं। प्राचीन समय में आवश्यकता पड़ने पर लोग पितरों को बुलाया करते थे और उनसे परामर्श लेते थे। आजकल इस विद्या का साधना ना होने से आधुनिक लोग पितरों के अस्तित्व को नकारने लगे हैं। फिर भी जो लोग अपने पितरों को पिंड दान आदि के द्वारा प्रसन्न रखते हैं।
पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए कम से कम तीन त्रिपिंडी श्राद्ध जरूरी
पिशाचमोचन के कर्मकांडी प्रदीप पांडेय ने ‘ (Udaipur Kiran) ’ को बताया कि सनातन धर्म में लोग पितृपक्ष में अपने पूर्वजों को यादकर उनका श्राद्ध करते हैं। तर्पण और श्राद्ध कर्म से पितृदोष से मुक्ति के साथ पितरों की शांति भी होती है। पितरों का तर्पण न करने से उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा भी मृत्यु लोक में भटकती है। ऐसे में पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। पितरों के प्रसन्न होने पर घर में सुख शांति आती है। बताते है कि विमल तीर्थ पर श्राद्ध कर्म के बाद ही गया श्राद्ध का महत्व है। शेरवाली कोठी के पंडा प्रदीप पांडेय के अनुसार पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व-पितृ तर्पण किया जाता है। उन्होंने बताया कि पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके जीवन में सभी कार्य मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार,वंश बेल की वृद्धि होती है। उन्होंने बताया कि पितृदोष के शमन के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। सनातन धर्म में ये श्राद्ध कर्म सबके लिए है। पूर्वजों की आत्मा की प्रसन्नता के लिए कम से कम तीन बार त्रिपिंडी श्राद्ध अवश्य वंशजों को करना चाहिए। इससे अधिक बार भी कर सकते है। उन्होंने बताया कि त्रिपिंडी श्राद्ध सिर्फ पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए नही किया जाता। अत्यधिक बीमार व्यक्ति के लिए भी किया जाता है। त्रिपिंडी श्राद्ध में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान रुद्र(शिव) की पूजा की जाती है।
—त्रयोदशी श्राद्ध का महत्व
पितृपक्ष में त्रयोदशी श्राद्ध का भी खास महत्व है। कर्मकांडी ब्राम्हण प्रदीप पांडेय बताते है कि अगर किसी परिजन का देहांत त्रयोदशी तिथि पर हुआ हो, तो उनका श्राद्ध इसी दिन करना श्रेयकर होता है। कभी किसी परिजन की मृत्यु कब हुई, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं होती. ऐसी स्थिति में त्रयोदशी को उनका श्राद्ध किया जा सकता है। जिन बच्चों की मृत्यु कम उम्र में हो गई हो, उनके लिए भी त्रयोदशी का दिन विशेष रूप से निर्धारित है।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
