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शिक्षकों की ओर से चार्जशीट काे चुनाैती देने वाली याचिका खारिज

नैनीताल, 7 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने शिक्षकों की ओर से उनके खिलाफ जारी चार्जशीट को चुनौती देने वाली सभी अपीलों को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि अपीलकर्ता जांच अधिकारी के समक्ष कानून के अनुसार उपलब्ध सभी दलीलें रखने के हकदार होंगे और अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा उनपर यहां की गई किसी भी टिप्पणी से अप्रभावित होकर उनके गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा।

न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी एवं न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार विरेंद्र सिंह नेगी व कई अन्य ने उच्च न्यायालय में स्पेशल अपील दायर कर कहा गया था कि उन्होंने राष्ट्रीय पत्राचार संस्थान, कानपुर, उत्तर प्रदेश से शिक्षा लंकार नामक शिक्षा स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 2004 में जिला शिक्षा अधिकारी उत्तरकाशी की ओर से प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। इसमें निर्धारित आवश्यक योग्यता बीएड के साथ स्नातक की उपाधि थी। अपीलकर्ताओं का आवेदन प्रारंभ में अस्वीकार कर दिया गया था। हालांकि इस न्यायालय में पूर्व में पारित आदेशों के अनुसरण में उनके आवेदन पर विचार किया गया और उसे विशेष बीटीसी प्रशिक्षण के लिए प्रतिनियुक्त किया गया। जिसके बाद 31 जुलाई 2006 को सहायक अध्यापक के पद परनियुक्तिहुई। लगभग दो दशकों तक सेवा देने और प्रधानाध्यापक के रूप में पदोन्नत होने के बाद अपीलकर्ता को जिला शिक्षा अधिकारी (प्राथमिक), उत्तरकाशी की ओर से आरोप पत्र दिया गया। इसमें एकमात्र आरोप यह था कि राष्ट्रीय पत्राचार संस्थान, कानपुर से प्राप्त उसकी बीएड की डिग्री अमान्य थी क्योंकि वह संस्थान को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं थी। अपीलकर्ता ने एकलपीठ के समक्ष आरोप पत्र को चुनौती दी थी। जिसमें एकलपीठ ने माना कि आरोप पत्र जारी करने से किसी कर्मचारी के अधिकार प्रभावित नहीं होते और डिग्री की वैधता की जांच केवल अनुशासनात्मक जांच में ही की जा सकती है। अपीलकर्ताओं की ओर से कहा गया कि वह 20 वर्ष से अधिक की दोष रहित सेवा प्रदान करने के बाद आरोप पत्र जारी नहीं किया जा सकता था। कहा कि विभाग ने स्वयं अपीलकर्ता की डिग्री का सत्यापन सहायक अध्यापक के रूप में उसकी प्रारंभिक नियुक्ति के समय और प्रधानाध्यापक के रूप में उसकी पदोन्नति के समय किया था। विभाग की ओर से कहा गया कि राष्ट्रीय पत्राचार संस्थान, कानपुर द्वारा प्रदान की गई बीएड डिग्री यूजीसी या एनसीटीई द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है, और इस प्रकार अपीलकर्ता के पास शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए अपेक्षित योग्यता नहीं थी। विभाग ने कहा कि केवल आरोप पत्र जारी करने से अपीलकर्ता को कोई नुकसान नहीं होता है और न ही कोई वाद-कारण उत्पन्न होता है। उन्होंने कहा कि कर्मचारी को केवल तभी उसे चुनौती देने का अधिकार प्राप्त होता है जब दंड लगाने या अन्यथा नागरिक परिणाम उत्पन्न करने वाला अंतिम आदेश पारित किया जाता है।

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(Udaipur Kiran) / लता

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