
जोधपुर, 25 जून (Udaipur Kiran) । स्थाई लोक अदालत,जोधपुर महानगर ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में व्यवस्था दी है कि जीवन बीमा कंपनी को प्रीमियम प्राप्त होने के बाद यह कहकर बीमा पॉलिसी रद्द करने का अधिकार ही नहीं है कि उन्होंने बीमा पॉलिसी जारी करने से पूर्व ही प्रीमियम रिफंड कर दिया है। अदालत के अध्यक्ष सुकेश कुमार जैन और सदस्य जेठमल पुरोहित और माणकलाल चांडक ने परिवाद मंजूर करते हुए एचडीबी फाइनेंशियल सर्विसेज को निर्देश दिया कि प्रार्थी से बतौर ऋण किस्त कटौती के 68 लाख 81 हजार 685 रुपए मय जमा तिथि से 8 फीसदी ब्याज और पांच हजार रुपये हर्जाना अदा करें।
नरेंद्र गहलोत ने अधिवक्ता अनिल भंडारी के माध्यम से परिवाद पेश कर कहा कि उन्होंने व उनकी पत्नी ने संयुक्त रूप से 60 लाख रुपये का ऋण 29 मार्च 2018 को लिया था। फाइनेंस कंपनी ने 69 हजार 109 रुपये प्रीमियम कटौती कर 31 मार्च 2018 को जीवन बीमा करने वास्ते प्रीमियम राशि एच डी एफ सी स्टैंडर्ड लाइफ इंश्योरेंस कंपनी को भेज दी। 23 अप्रैल 2018 को प्रार्थी की पत्नी सुनीता की मृत्यु हो जाने पर प्रार्थी ने वित्तीय संस्था को पत्र देकर कहा कि उनकी पत्नी की मृत्यु हो जाने से बीमा प्रावधान के तहत ऋण की प्रतिमाह किस्त 80 हजार 961 रुपये की कटौती बंद करें और जायदाद के असल कागजात लौटाएं।
अधिवक्ता भंडारी ने बहस करते हुए कहा कि बीमा कंपनी और वित्तीय संस्था ने मिलकर 31 अगस्त 2018 को कूट रचित मिलीभगत कर बीमा प्रीमियम राशि 69 हजार 109 रुपये प्रार्थी के ऋण खाते में जमा कर दी। उन्होंने कहा कि प्रार्थी की पत्नी की मृत्यु के बाद राशि रिफंड करने से बीमा संविदा समाप्त नहीं हो सकती है। बीमा कंपनी की ओर से कहा गया कि उन्होंने चिकित्सकीय अभाव में वित्तीय संस्था के कहने पर बीमा पॉलिसी जारी ही नहीं की है ।
स्थाई लोक अदालत ने पांच हजार रुपये हर्जाना लगाते हुए प्रकरण मंजूर कर कहा कि बीमा प्रावधान में किसी भी एक ऋणी की मृत्यु होने पर ऋण किस्त बंद हो जाती है। उन्होंने कहा कि यह निर्विवाद है कि 31 मार्च को प्रीमियम प्रार्थी के ऋण खाते से काटकर बीमा कंपनी को भिजवा दिया गया और प्रार्थी की पत्नी की 23 अप्रैल को मृत्यु हो जाने पर चिकित्सकीय परीक्षण के आधार पर पांच माह बाद 31 अगस्त को बीमा प्रीमियम रिफंड किया जाना पूर्णतया गलत है,क्योंकि एक बार उन्होंने बीमा प्रीमियम स्वीकार कर लिया है तो यही माना जाएगा कि उन्होंने चिकित्सकीय परीक्षण की आपत्ति को स्वयं ने दरकिनार कर दिया है।
उन्होंने एचडीबी फाइनेंशियल सर्विसेज को निर्देश दिया कि प्रार्थी से प्रतिमाह वसूल की गई किस्त 80 हजार 961 रुपये,जो कि अभी तक 68 लाख 81 हजार 685 रुपये हो चुकी है,जमा तिथि से 8 फीसदी ब्याज सहित प्रार्थी को अदा करें और भविष्य में कोई कटौती नहीं करें और जायदाद के असल दस्तावेज लौटाएं। उन्होंने एच डी बी फाइनेंशियल सर्विसेज को छूट दी है कि प्रार्थी को राशि रिफंड करने के बाद एच डी एफ सी स्टैंडर्ड लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने को स्वतंत्र है।
(Udaipur Kiran) / सतीश
