
जयपुर, 3 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । अक्टूबर माह में पैदा हुए कई लोग अपना जन्मदिन एक धार्मिक संस्कार के रूप में पांच अक्टूबर रविवार को श्री राधा गोविन्द देव जी मंदिर में मनाएंगे। यहां सुबह आठ बजे से मंदिर महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सानिध्य में अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार के मार्गशन में जन्मदिन संस्कार महोत्सव मनाया जाएगा। इस मौके पर नि:शुल्क गायत्री महायज्ञ भी होगा। अक्टूबर माह में जन्मे लोग पंच तत्व पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल, आकाश का पूजन करेंगे। गायत्री परिवार ने पांचों तत्वों के अलग से चित्र बनाए हैं। प्रत्येक तत्व का अलग-अलग रंग की दाल का पुष्प और अक्षत से पूजन किया जाएगा। गोविंद देवजी मंदिर के सेवाधिकारी मानस गोस्वामी ने बताया कि श्रद्धालुओं को हवन और जन्मदिन पूजन की सामग्री निशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी। निर्धारित समय आठ बजे तक स्थान ग्रहण करने वालों को ठाकुर जी का विशेष आशीर्वाद उपहार स्वरूप प्रदान होगा। श्रद्धालु अपने परिजनों एवं मित्रों का जन्मदिन भी संस्कार पूर्वक मना सकेंगे, चाहे वे जयपुर में हों या बाहर। आयोजन का मुख्य उद्देश्य यह है कि जन्मदिन संस्कार लोग दीप जलाकर एवं वेद मंत्रों के साथ मनाएं न कि मोमबत्ती बुझाकर और केक काटकर।
शांतिकुंज हरिद्वार से एक दिवसीय प्रवास पर आए गायत्री परिवार राजस्थान जोन के समन्वयक गौरीशंकर सैनी ने बताया कि शरीर पंचतत्व से बना है। इस संसार का प्रत्येक पदार्थ मिट्टी, जल, अग्नि, वायु, आकाश इन पांच तत्वों से बना है । इसलिए इस सृष्टि के आधारभूत ये पांच ही दिव्य तत्त्व देवता है। इनकी पूजा करने से इन जड़ पदार्थों, अदृश्य शक्तियों, स्वर्गीय आत्माओं का भले ही कोई लाभ न होता हो, पर हमारी कृतज्ञता का प्रसुप्त भाव जाग्रत होने से हमारी आंतरिक उत्कृष्टता बढ़ती ही है। इस पूजन का दूसरा उद्देश्य यह है कि इन पांचों के सदुपयोग का ध्यान रखा जाए। शरीर जिन तत्वों से बना है, उनका यदि सही रीति-नीति से उपयोग करते रहा जाए, तो कभी भी अस्वस्थ होने का अवसर न आए । पृथ्वी से उत्पन्न अन्न का जितना, कब और कैसे उपयोग किया जाए, इसका ध्यान रखें तो पेट खराब न हो। जल की स्वच्छता एवं उचित मात्रा में सेवन करने का, विधिवत स्नान का, वस्त्र, बर्तन, घर आदि की सफाई, जल के उचित प्रयोग का ध्यान रखा जाए। अग्नि की उपयोगिता सूर्य ताप को शरीर, वस्त्र, घर आदि में पूरी तरह प्रयोग करने में है। भोजन में अग्नि का सदुपयोग भाप द्वारा पकाए जाने में है। शरीर की भीतरी अग्नि ब्रह्मचर्य से सुरक्षित रहती एवं बढ़ती है। स्वच्छ वायु का सेवन, खुली जगहों में निवास, प्रातः: टहलने जाना, प्राणायाम, गंदगी से वायु को दूषित न होने देना आदि वायु की प्रतिष्ठा है। आकाश की पोल में ईथर, विचार शब्द आदि भरे पड़े हैं, उनका मानसिक एवं भावना क्षेत्र में इस प्रकार उपयोग किया जाए कि हमारी अंत:चेतना उत्कृष्ट स्तर की ओर चले, यह जानना, समझना आकाश तत्त्व का उपयोग है। इसी सदुपयोग के द्वारा हम सुख-शान्ति और समृद्धि का पथ-प्रशस्त कर सकते हैं ।
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(Udaipur Kiran)
