Madhya Pradesh

पन्नाः भव्यता के साथ मनाया गया हलछठ महोत्सव, श्री बल्देव जी मंदिर में उमड़े श्रद्धालु

बलदाऊ जी का प्रकटोत्‍सव

पन्‍ना, 14 अगस्त (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश के पवित्र नगर पन्ना मे गुरुवार को ऐतिहासिक श्री बलदेव जी मंदिर मे उनका प्रकटोत्सव धूमधाम से मनाया गया। इसके लिए एक पखवाड़े से तैयारियां चल रही थीं मंदिर एवं परिसर को भव्य रूप से सजाया गया था। जैसे ही दोपहर के 12 बजे तो मंदिर परिसर आतिशबाजी बम पटाखों सहित हलधर बलदाउ जी के जयकारों से गुजायमान हो गया तथा बैण्ड बाजों की धुन पर लोग थिरकते नजर आए। जन्मोत्सव कार्यक्रम में विशेष रूप से राजपरिवार की ओर से महाराज छत्रसाल द्वितीय, क्षेत्रीय सांसद बी डी शर्मा, विधायक पन्ना ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह, कलेक्टर पन्ना सहित गणमान्य नागरिक और हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

बुंदेलखंड और बघेलखंड की कठोर जलवायु, कठिन जीवनशैली और वीरता जितनी प्रसिद्ध है, उतनी ही यहाँ की आस्था और संस्कृति भी अनुपम है। इन्हीं अमूल्य सांस्कृतिक धरोहरों में एक है हरछठ (हलषष्ठी) महोत्सव मातृत्व की पवित्रता, संतान-सुरक्षा और कृषि-परंपरा का अद्वितीय संगम। पन्ना के विश्वविख्यात प्राचीन बलदाऊ जी मंदिर में यह पर्व सदियों से अद्वितीय भव्यता और गहन श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। हाल ही में मध्यप्रदेश की मोहन सरकार ने इसकी महत्ता को मान्यता देते हुए इसे राज्य पर्व का दर्जा प्रदान किया, जिससे इसका प्रभाव अब केवल स्थानीय सीमाओं तक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचने लगा है। पन्ना केवल हीरों की नगरी नहीं, बल्कि एक ऐसा पावन तीर्थ है जहाँ आने वाला भक्त मानता है कि पन्ना धाम के प्रमुख मंदिरों के दर्शन चारों धाम की यात्रा के बराबर पुण्यफल देते हैं।

यहाँ एक ही नगर में श्रीराम जानकी मंदिर, जुगुल किशोर मंदिर, जगन्नाथ स्वामी मंदिर, महामती प्राणनाथ मंदिर, सारंगधाम मंदिर, समीपवर्ती क्षेत्रों में सलेहा का अगस्त मुनि सिद्धनाथ मंदिर, चौमुखनाथ मंदिर, सहित अनेकों प्राचीन और पूज्य स्थल हैं, जो सनातन संस्कृति के विविध रूपों का जीवंत संगम प्रस्तुत करते हैं।

हरछठ व्रत: लोकपरंपरा और धार्मिक आस्था का संगमः- भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला हरछठ व्रत, भगवान बलराम (बलदाऊ/हलधर) को समर्पित है। बलराम हल और मूसल धारण करने वाले किसान और श्रम संस्कृति के आदर्श प्रतीक हैं। यह व्रत विशेष रूप से संतान की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए माताएँ करती हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वः- मातृत्व का उत्सव कृ यह व्रत माँ और संतान के बीच अटूट प्रेम व सुरक्षा के व्रत का प्रतीक है। कृषि-समर्पण का पर्व हल और मूसल का वंदन कर किसान जीवन और परिश्रम का सम्मान किया जाता है। प्रकृति-संरक्षण कृ हल न चलाना और प्राकृतिक अन्न ग्रहण करना भूमि और पर्यावरण के संरक्षण का संदेश देता है। सामाजिक एकता कृ इस दिन जाति, वर्ग और संपन्नता की भेदरेखाएँ मिट जाती हैं, सभी एक साथ उत्सव में शामिल होते हैं।

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(Udaipur Kiran) / सुरेश पांडे

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