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गोविंद देवजी मंदिर में पंचकुंडीय बलिवैश्व गायत्री महायज्ञ का आयोजन

गोविंद देवजी मंदिर में पंचकुंडीय बलिवैश्व गायत्री महायज्ञ का आयोजन
गोविंद देवजी मंदिर में पंचकुंडीय बलिवैश्व गायत्री महायज्ञ का आयोजन

जयपुर, 22 जून (Udaipur Kiran) । गायत्री परिवार के तत्वावधान में रविवार को वैदिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा को पुनजीर्वित करने के लिए आषाढ़ कृष्ण एकादशी के शुभ अवसर पर गोविंद देवजी मंदिर परिसर में पंचकुंडीय बलिवैश्व गायत्री महायज्ञ का भव्य आयोजन किया गया। इस आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहें और सभी को यज्ञ में आहुतियां प्रदान करने का अवसर मिला।

यज्ञ गायत्री शक्तिपीठ ब्रह्मपुरी की विद्वान टोली के निर्देशन में सम्पन्न हुआ, जिसमें वैदिक मंत्रों की गूंज और अग्निहोत्र की पवित्र लपटों ने वातावरण को दिव्यता से भर दिया। गोविंद देवजी मंदिर के महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सान्निध्य में हुए महायज्ञ में 200 से अधिक श्रद्धालुओं ने यज्ञ किया। आचार्य पीठ से दिनेश आचार्य ने कहा कि वर्तमान युग में गैस चूल्हों के प्रचलन से अग्नि को भोग देने की परंपरा लुप्त होती जा रही है। इसी को पुनर्जीवित करने के लिए गायत्री परिवार ने एक विशेष तांबे का पात्र तैयार कराया है, जिसके माध्यम से घर में सुरक्षित रूप से अग्नि को भोग लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जब परिवारजन अपने लिए नहीं, अपनों के लिए सोचते हैं तो परिवार और राष्ट्र दोनों सशक्त होते हैं। भोजन भेद जैसे व्यवहार त्यागकर, सभी के लिए प्रेमपूर्वक भोजन बनाना भी बलिवैश्व की भावना में सम्मिलित है। यही संवेदना और समर्पण जीवन को यज्ञमय बनाते हैं। कार्यक्रम में बलिवैश्व यज्ञ प्रक्रिया का लाइव डेमो भी दिया गया, जिससे उपस्थितजनों ने बलिवैश्व यज्ञ की विधि को व्यवहारिक रूप में समझा। गायत्री चेतना केंद्र बनी पार्क के कैलाश अग्रवाल और रमेश अग्रवाल के सौजन्य से तांबे के बलिवैश्व पात्र आधे मूल्य पर उपलब्ध कराए गए।

बलिवैश्व यज्ञ की सरल विधि में छिपा है महान उद्देश्य

गायत्री परिवार के वरिष्ठ परिजनों ने बलिवैश्व यज्ञ की सरल प्रक्रिया समझाते हुए बताया गया कि घर पर बने शुद्ध, सात्विक अन्न में से थोड़ा भाग अलग निकालकर पाँच आहुति के रूप में अग्नि को समर्पित करना चाहिए। इसके लिए गायत्री मंत्र के साथ विशेष तांबे के पात्र में आहुति दी जाती है और शेष अन्न को यज्ञप्रसाद के रूप में परिवारजनों में बाँटा जाता है।

पंच महायज्ञों के माध्यम से आत्मोन्नति और लोकमंगल- गायत्री परिवार राजस्थान प्रभारी ओम प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि बलिवैश्व यज्ञ केवल यज्ञ नहीं, बल्कि पंच महायज्ञों की प्रेरणा का केंद्र है— ब्रह्मयज्ञ – आत्मा और परमात्मा के मिलन की साधना, देवयज्ञ – देवत्व की प्राप्ति और चेतना का उत्कर्ष, ऋषियज्ञ – ज्ञान संवर्धन और वैदिक मूल्यों का संरक्षण, नरयज्ञ – सेवा, प्रेम और करुणा का विकास, भूतयज्ञ – प्रकृति और प्राणियों के प्रति आत्मीयता का विस्तार। बलिवैश्व यज्ञ की परंपरा को घर-घर तक पहुंचाने में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। महिलाएं इसे सहजता से दैनिक जीवन में आत्मसात कर सकती हैं और अपने बच्चों को सुसंस्कारी बना सकती हैं।

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(Udaipur Kiran)

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