
नई दिल्ली, 05 अगस्त (Udaipur Kiran) । वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर अध्यादेश को लागू करने में काफी जल्दबाजी करने पर उच्चतम न्यायालय की फटकार के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि अध्यादेश लाने का उसका मकसद मंदिर को बेहतर प्रशासन देना है। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश एएसजी केएम नटराज ने कहा कि अध्यादेश का मंदिर प्रशासन को लेकर लंबित वाद से कोई लेना-देना नहीं है।
सुनवाई के दौरान नटराज ने कहा कि मंदिर के दर्शन के लिए हर हफ्ते दो से तीन लाख लोग पहुंचते हैं। तब अदालत ने नटराज से कहा कि आपकी दलील सही हो सकती है लेकिन तब जब अध्यादेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है। दरअसल 4 अगस्त को उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस बात के लिए फटकार लगाई थी कि उसने वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर अध्यादेश को लागू करने में काफी जल्दबाजी की। अदालत ने मंदिर के धन के इस्तेमाल के लिए सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय से बिना प्रभावित पक्षों को सुने अनुमति लेने के तरीकों को भी सवालों के घेरे में लिया था।
अदालत ने कहा था कि 15 मई को सरकार ने गुप्त तरीके से एक कॉरिडोर को विकसित करने के लिए मंदिर के धन का इस्तेमाल करने के लिए मंजूरी ली। अदालत ने साफ किया था कि मंदिर जैसे धार्मिक स्थलों के मामले नो मैंस लैंड नहीं हैं। सरकार को मंदिर प्रबंधन से जुड़े अन्य हितधारकों को सुने बिना कोई फैसला नहीं लेना चाहिए था। मई में उच्चतम न्यायालय ने मंदिर के धन से पांच एकड़ भूमि अधिगृहित कर पांच सौ करोड़ रुपये की लागत से एक कॉरिडोर विकसित करने की अनुमति दी थी। उच्चतम न्यायालय ने ये अनुमति इस शर्त पर दी थी कि जमीन देवता के नाम पर पंजीकृत हो। उच्चतम न्यायालय ने आज सुनवाई के दौरान ये संकेत किया कि वो इस अनुमति को वापस ले सकता है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मंदिर के धन का उपयोग तीर्थयात्रियों के लिए होना चाहिए, न कि निजी व्यक्तियों की जेब भरने के लिए। न्यायालय ने साफ कहा था कि यह अध्यादेश धार्मिक मामलों में सरकारी हस्तक्षेप के समान है।
दरअसल, उच्चतम न्यायालय बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को संशोधित करने की यूपी सरकार की मांग पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता देवेन्द्र नाथ गोस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले में उन्हें पक्षकार बनाये ही राज्य सरकार को तीन सौ करोड़ रुपये दे दिए गए। सिब्बल ने पूछा कि किसी दूसरी याचिका के जरिये किसी निजी मंदिर की कमाई को राज्य सरकार को कैसे दिया जा सकता है। तब यूपी सरकार ने कहा कि राज्य सरकार ने बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया है और वो ट्रस्ट कॉरिडोर के काम को देखेगी। यूपी सरकार ने कहा कि पूरा पैसा ट्रस्ट के पास है न कि राज्य सरकार के पास। तब सुप्रीम अदालत ने यूपी सरकार को ट्रस्ट के निर्माण संबंधी राज्य सरकार की अधिसूचना की प्रति दाखिल करने का निर्देश दिया।
दरअसल, यूपी सरकार कॉरिडोर विकसित करने के लिए पांच सौ करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत वहन करना चाहती है, लेकिन यूपी सरकार ने संबंधित जमीन खरीदने के लिए मंदिर के पैसों का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा था। बांके बिहारी जी ट्रस्ट के पास मंदिर के नाम पर फिक्स डिपॉजिट है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 8 नवंबर 2023 को यूपी सरकार के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने कहा था कि कॉरिडोर को बनाया जाना चाहिए लेकिन इसमें मंदिर के फंड का उपयोग नहीं किया जाए। उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के इसी आदेश को संशोधित करते हुए यूपी सरकार को प्रस्तावित भूमि का अधिग्रहण करने के लिए मंदिर के फिक्स डिपॉजिट में पड़ी राशि के इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी।
(Udaipur Kiran) /संजय ———–
(Udaipur Kiran) / सुनीत निगम
