
स्टडी लीव के बाद तीन साल ड्यूटी ज्वाइन नहीं की, नौकरी खत्म करना सही: हाईकोर्ट
जोधपुर, 11 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । राजस्थान हाईकोर्ट ने जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी द्वारा एक सहायक प्रोफेसर को नौकरी से टर्मिनेट करने के आदेश को सही ठहराया है। जस्टिस रेखा बोराणा ने अपने जजमेंट में प्रीति कल्ला की याचिका खारिज करते हुए कहा कि स्टडी लीव खत्म होने के बाद लगातार तीन साल तक ड्यूटी पर नहीं लौटना जानबूझकर गैरहाजिरी और नौकरी छोडऩा है। इसलिए नौकरी खत्म करने का निर्णय सही है।
दरअसल न्यू पावर हाउस रोड क्षेत्र निवासी प्रीति कल्ला को 14 फरवरी 1992 को जेएनवीयू में पार्ट टाइम टीचर के रूप में रखा गया था। बाद में रेगुलर भर्ती में उनका चयन हुआ और 12 अगस्त 1999 को इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन की सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति मिली। उसके बाद 28 अगस्त 2000 को उन्हें इस पद पर परमानेंट कर दिया गया। साल 2002 में कल्ला ने एमई करने के लिए स्टडी लीव के लिए आवेदन किया। तब 22 अक्टूबर 2002 को एक साल के लिए मंजूरी दी गई। कोर्स पूरा नहीं होने पर स्टडी लीव एक साल और बढ़ाई गई। याचिकाकर्ता कल्ला ने स्टडी लीव के लिए नियमानुसार बॉन्ड भी जमा किया था। इसके बाद उन्होंने तय समय में एमई की डिग्री पूरी कर ली, लेकिन पीएचडी करने के बहाने ड्यूटी पर नहीं लौटी।
विवि ने भेजा नोटिस
जुलाई 2005 को विवि रजिस्ट्रार ने पत्र भेजकर 10 दिन में ड्यूटी ज्वाइन करने को कहा, नहीं तो इसे जानबूझकर गैरहाजिरी मान कार्रवाई की जाएगी। इसके जवाब में वाइस चांसलर से पीएचडी पूरी करने के लिए 3 साल की असाधारण छुट्टी मांगी। तब 10 नवंबर 2006 को फिर पत्र भेज कहा गया कि स्टडी लीव खत्म होने के बावजूद ड्यूटी ज्वाइन नहीं की गई है। दस दिन में ड्यूटी ज्वाइन करें। जवाब में फिर स्टडी लीव बढ़ाने की मांग की। इसके बाद 26 अप्रैल 2007 को विवि ने सूचित किया कि लीव बढ़ाने की रिक्वेस्ट 11 मार्च 2007 के सिंडिकेट रेजोल्यूशन अनुसार रिजेक्ट कर दी गई है। इस नोटिस के एक महीने में ड्यूटी ज्वाइन नहीं करने पर विवि नियमानुसार नौकरी खत्म कर दी जाएगी। आखिरकार 30 जुलाई 2007 को नौकरी खत्म कर दी गई। इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
कोर्ट में यह दी दलील
कल्ला के वकील आरएस सलूजा और अचराज सलूजा ने तर्क दिया कि सिंडिकेट रेजोल्यूशन में टर्मिनेशन का निर्देश नहीं था। नौकरी खत्म करने के लिए निर्धारित प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। यदि स्टडी लीव नहीं बढ़ाई जा सकती, तो कम से कम असाधारण छुट्टी तो मिलनी चाहिए थी। गैरहाजिरी को असाधारण छुट्टी में बदला जा सकता था। वहीं विवि के वकील पीआर. सिंह जोधा ने तर्क दिया कि स्टडी लीव खत्म होने के बाद ड्यूटी ज्वॉइन करना जरूरी था। कल्ला ने पीएचडी के लिए कभी फॉर्मल आवेदन नहीं किया, केवल लीव बढ़ाने की रिक्वेस्ट की। नियमों में एक कोर्स के लिए मिली स्टडी लीव को दूसरे कोर्स के लिए बढ़ाने का कोई प्रावधान नहीं है। याचिकाकर्ता असाधारण छुट्टी के लिए जरूरी सेवा के साल भी पूरे नहीं कर पाई थी। नियमानुसार पूरी नौकरी में कुल तीन साल की स्टडी लीव मिल सकती है और याचिकाकर्ता दो साल ले चुकी थी। उन्हें स्पष्ट बताया गया कि लीव बढ़ाने की रिक्वेस्ट रिजेक्ट हुई है। फिर भी उन्होंने ड्यूटी ज्वाइन नहीं की, इसलिए यह जानबूझकर गैरहाजिरी है।
(Udaipur Kiran) / सतीश
