
काठमांडू, 22 अगस्त (Udaipur Kiran) । नेपाल में लोकतंत्र पुनर्बहाली के बाद शुरू हुए मधेश आंदोलन के दौरान पुलिस द्वारा किए गए 400 से अधिक इनकाउंटर की जांच का आदेश दिया गया है। 9 साल पहले कोर्ट में दायर एक याचिका पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी इनकाउंटर की निष्पक्ष जांच करने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों के बेंच ने सन 2006 से लेकर 2015 के बीच मधेश के जिलों में पुलिस द्वारा विशेष सुरक्षा अभियान के नाम पर किए गए इनकाउंटर की जांच करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील रंजन सिंह के द्वारा दायर किए गए रिट पर कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए के केन्द्रीय अनुसंधान ब्यूरो (सीआईबी) से इन सभी इनकाउंटर की जांच करने को कहा है।
2016 में अधिवक्ता सुनील रंजन सिंह ने कोर्ट में याचिका दायर करते हुए सरकार के विशेष सुरक्षा योजना के तहत पुलिस द्वारा 400 से अधिक फेक इनकाउंटर कर निर्दोष नागरिकों की हत्या करने का आरोप लगाते हुए इसकी जांच की मांग की थी। अब 9 साल बाद सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सपना प्रधान मल्ल, मनोज केसी और हरि फ़ुयाल की बेंच ने सभी घटनाओं की निष्पक्ष जांच का आदेश दिया है।
भारतीय सीमावर्ती क्षेत्र मधेश के जिलों में अपने संवैधानिक अधिकार और सामाजिक पहचान को लेकर आंदोलन शुरू किया। इसी बीच कई संगठनों ने सशस्त्र आंदोलन भी शुरू किया था। इनमें माओवादी से अलग हुए मधेशी नेताओं ने सशस्त्र विद्रोह करने की घोषणा की थी। इससे निबटने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने नेपाल पुलिस को विशेष सुरक्षा योजना के तहत इन सशस्त्र विद्रोहियों के साथ निबटने का विशेषाधिकार दिया था।
नेपाल पुलिस ने मधेश के 22 जिलों में विशेष सुरक्षा योजना के तहत कई इनकाउंटर किए जिसमें 400 से अधिक नागरिकों की मौत हो गई। याचिकाकर्ता का आरोप है कि नेपाल पुलिस ने अधिकांश फेक इनकाउंटर कर निर्दोष लोगों की हत्या की है। इसमें अधिकांश निर्दोष लोग मारे हैं जिन पर सशस्त्र समूहों के साथ मिले होने का आरोप लगा था।
कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अधिवक्ता सुनील रंजन सिंह ने कहा कि अदालत का फैसला स्वागतयोग्य है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अदालत के आदेश के बाद सीआईबी इन घटनाओं की निष्पक्ष जांच करेगी दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगी। उन्होंने बताया कि वैसे तो रिट में इन घटनाओं की न्यायिक जांच के आदेश देने की मांग की गई थी लेकिन कोर्ट ने उसे नहीं माना।
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(Udaipur Kiran) / पंकज दास
