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बरी होने से पूर्व न्यायिक अभिरक्षा में काटी अवधि का वेतन और परिलाभ देने के आदेश

हाईकाेर्ट

जयपुर, 21 अगस्त (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के आरोप में कांस्टेबल के दो साल जेल में बंद रहने के बाद बरी होने के मामले में राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि वह कांस्टेबल को इस अवधि का वेतन और समस्त परिलाभ अदा करने को कहा है। इसके साथ ही अदालत ने इस अवधि को याचिकाकर्ता का अवैतनिक अवकाश मानने के विभाग के आदेश को रद्द कर दिया है। जस्टिस आनंद शर्मा की एकलपीठ ने यह आदेश हरभजन सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए दिए।

याचिका में अधिवक्ता सुनील समदडिया ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता कांस्टेबल को 21 अगस्त, 2000 को दुष्कर्म व एससी,एसटी एक्ट के आरोपों के तहत गिरफ्तार किया गया। वहीं सक्षम अधिकारी ने उसी दिन उसे निलंबित कर दिया। वहीं अप्रैल, 2021 में उसके खिलाफ आरोप पत्र जारी कर विभागीय जांच भी आरंभ की गई। दूसरी ओर मामले में पुलिस की ओर से आरोप पत्र पेश करने के बाद ट्रायल कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनकर याचिकाकर्ता को एक अगस्त, 2002 को याचिकाकर्ता को दोषमुक्त कर दिया। इसी आधार पर विभाग ने 11 सितंबर, 2002 को उसका निलंबन भी रद्द कर दिया। याचिका में कहा गया कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने 21 अगस्त, 2000 से एक अगस्त, 2002 की अवधि को अनुपस्थिति की अवधि मानते हुए उसे अवैतनिक अवकाश में बदल दिया। इसे याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में चुनौती दी गई। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उसे विभागीय कार्रवाई में सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया था और निलंबन अवधि को सरकारी सेवा के सभी उद्देश्यों के लिए गिनने की बात कही गई थी। इसके बावजूद भी उसकी निलंबन अवधि को अवैतनिक अवकाश मानकर वेतन व परिलाभ नहीं दिए। इसका विरोध करते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा कि काम नहीं तो वेतन नहीं एक सामान्य सिद्धांत है। याचिकाकर्ता ने इस अवधि में काम नहीं किया तो उसे इस अवधि का वेतन भी नहीं दिया गया। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता को निलंबन अवधि का वेतन व परिलाभ देने को कहा है।

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(Udaipur Kiran)

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