
भिण्ड, 20 जून (Udaipur Kiran) । जिला मुख्यालय से विभिन्न रूटों पर दौड़ने वाली यात्री बसें अनफिट अवस्था में हैं, इसके बाद भी लालच के चलते इनमें क्षमता से अधिक सवारियां ढ़ोई जा रही है, लेकिन परिवहन विभाग इन पर कार्रवाई करने से कतरा रहा है। इस लापरवाही के चलते यात्रियों की जान पर खतरा मडरा रहा है।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने शासकीय स्तर पर करीब डेढ़ दसक पूर्व परिवहन निगम को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया था। इसके बाद से ही जिले के सभी प्रमुख रूटों पर प्राइवेट ऑपरेटर्स का कब्जा है। प्राइवेट ऑपरेटर्स का नेटवर्क इतना मजबूत है कि सिटी बस सेवा को भी सफल नहीं होने दिया गया। बड़ी उम्मीदों के साथ शुरू की गई ये सेवा 07 साल बाद भी हिचकोले मार रही है। निजी ऑपरेटर्स के दबाव के चलते परिमिट भी जारी नहीं किए जा रहे।
भिण्ड में प्राइवेट ऑपरेटर्स का खौफ इतना है कि वे उप्र परिवहन विभाग की बसों को बसस्टेंड पर आना तो दूर सुभाष तिराहा, इटावा चुंगी और लहार चुंगी पर खड़ा भी नहीं होने देते। जो भी बसें आती हैं उनको सीधे निकल जाना पड़ता है। यही कारण है कि उप्र रोडवेज के अधिकारियो को बीच-बीच में गाड़ियां बंद भी करना पड़ता है। कई बार तो चालक और परिचालक के साथ मारपीट भी हो चुकी है।
ग्वालियर से भिण्ड आई महिला यात्री 30 साल की मनोरमा गुप्ता ने बताया कि बस में क्षमता से अधिक सवारियां हैं। बच्चा साथ में होने के बाद भी सीट नहीं दी गई। बैठाते समय सीट देने का वादा किया था। ग्वालियर से आ रहे दीपक दोहरे का कहना है कि डेली अप-डाउन करने वाले यात्रियों से पूरा किराया वसूल किया जाता है। सीट भी नहीं दी जाती। दिव्यांग संतोष ने बताया कि पैर से से विकलांग हूं। गोहद से खड़े खड़े आ रहा हूं। हमारी मजबूरी है – कोई विकल्प हमारे पास नहीं है। सीनियर सिटीजन अवधेशसिंह ने बताया कि खटारा बसों में सफर करने वाले यात्री भी अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं। अफसोस है कि हमारे एक बड़े राज्य के निवासी है इसके बाद भी यहां पर परिवहन निगम नहीं है।
इनके अलावा कई अन्य यात्रियों का कहना था कि इटावा और ग्वालियर रूट पर चलने वाली अधिकांश बसे खटारा हो चुकी है। इन बसों में क्षमता से अधिक सवारियों को भरकर ले जाया जा रहा है। ये लापरवाही कभी भी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है। यहां पर बतां दें कि ये खटारा बसें क्षमता से अधिक सवारियां लेकर जिला परिवहन अधिकारी कार्यालय के ठीक सामने से गुजर जाती है। विकल्प के आभाव में यात्री भी इन्हीं में यात्रा करने को मजबूर हैं। जिन वाहनों को परिवहन विभाग ने 52 सवारियों का परमिट दिया है। उनमें प्राइवेट ऑपरेटर्स ने एक्सटेंशन करा लिया है। इससे परिवहन विभाग को भारी नुकसान पहुंच रहा है। बस में 60 से अधिक सवारियां भरकर चलाया जा रहा है। वहीं, इसका कहना यह भी है कि चालक और परिचालको के पास निर्धारित गणवेश नहीं होती। किराया सूची का भी अता पता नहीं है। यात्रियों के टिकट भी नहीं दिया जाता है। चैकिंग के दौरान यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि किस यात्री से कितना किराया वसूल किया गया है।
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(Udaipur Kiran) / राजू विश्वकर्मा
