
बांकुड़ा, 15 जुलाई (Udaipur Kiran) । ‘निर्मल जिला’ के तौर पर घोषित पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के ‘निर्मल ग्राम’ के तौर पर घोषित दुर्लभपुर गांव की सच्चाई एक बार फिर सामने आ गई है। जिले के गंगाजलघाटी ब्लॉक स्थित दुर्लभपुर गांव में डायरिया के प्रकोप के साथ ही जनस्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली उजागर हो गई है। स्वास्थ्य विभाग खुद मान रहा है कि इस तथाकथित ‘निर्मल गांव’ के करीब 70 प्रतिशत घरों में शौचालय ही नहीं है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि वे आज भी पीने और घरेलू इस्तेमाल के लिए गंदे तालाब के पानी पर निर्भर हैं। तालाब में आसपास के नालों का गंदा पानी भी मिल जाता है। यही पानी पीने से लेकर बर्तन धोने तक में उपयोग किया जा रहा है।
दुर्लभपुर गांव के लोहा पाड़ा इलाके में, जहां अधिकतर खेतिहर मजदूर रहते हैं, डायरिया फैल गया है। अब तक 50 से अधिक लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं। जैसे ही मामला सामने आया, स्वास्थ्य विभाग ने मेडिकल टीम गांव भेजी। मौके पर पहुंचे ब्लॉक प्रशासन, ब्लॉक स्वास्थ्य अधिकारी और बांकुड़ा जिले के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. श्यामल सोरेन ने जब वास्तविक स्थिति देखी, तो वे भी हैरान रह गए।
उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले बांकुड़ा जिले को ‘निर्मल जिला’ घोषित किया गया था और जिले को इस उपलब्धि के लिए पुरस्कार भी मिला था। दुर्लभपुर गांव को भी ‘निर्मल ग्राम’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जिसका अर्थ है कि गांव के प्रत्येक घर में शौचालय होना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि ग्रामीण आज भी खुले में शौच और गंदे पानी पर निर्भर हैं।
मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. श्यामल सोरेन ने कहा कि यहां 962 घर हैं। 70 प्रतिशत में शौचालय नहीं है। लोग तालाब के गंदे पानी से बर्तन धोते हैं और वही पीते भी हैं। चारों ओर से गंदा नाला उसी तालाब में गिरता है। हमने लोगों को सतर्क किया है, लेकिन हालात चिंताजनक हैं।
इस मामले में गंगाजलघाटी पंचायत समिति ने स्वीकार किया कि गांव के कई गरीब परिवारों के पास शौचालय के लिए पर्याप्त जमीन नहीं है, इसलिए सभी घरों में शौचालय नहीं बन सके। उनका कहना है कि कम्युनिटी टॉयलेट के आधार पर गांव को ‘निर्मल’ घोषित किया गया था।
जहां तक पेयजल का सवाल है, पंचायत का दावा है कि नल-जल परियोजना पर काम चल रहा है और जल्द ही पाइपलाइन से शुद्ध पेयजल गांव तक पहुंच जाएगा।
विपक्षी दलों ने इस पूरे मुद्दे को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। उनका आरोप है कि करोड़ों रुपये की जल परियोजनाएं लागू होने के बाद भी अगर लोगों को गंदा तालाब का पानी पीना पड़े, तो ‘निर्मल जिला’ और ‘स्वच्छ भारत’ जैसे दावों का क्या मतलब रह जाता है।
दुर्लभपुर गांव की तस्वीर न सिर्फ बांकुड़ा जिले की बल्कि पूरे राज्य में ग्रामीण जनस्वास्थ्य और आधारभूत सुविधाओं की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
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(Udaipur Kiran) / धनंजय पाण्डेय
