
हमीरपुर, 17 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में दीवाली का समय नजदीक आते ही कुम्हारों के चाकों ने तेजी पकड़ ली थी। किन्तु अब जबकि दीपावली को मात्र दाे दिन शेष बचे हैं, दियों की अपेक्षित बिक्री होते न देख कुम्हारों की उम्मीद का दिया बुझता जा रहा है। दिये बना दूसरों के घराें को रोशन करने वालों के घर कहीं इस दीपावली पर भी अंधेरा न रहे इसका ध्यान सभी को रखना होगा।
दीपावली हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। इस त्योहार में शायद ही ऐसा कोई घर हो जो दीपों की रोशनी से न जगमगा रहा हो। वहीं लोग नए वस्तों आदि का भी इस दिन प्रयोग करते हैं। धन, वैभव व सुख सौभाग्य का प्रतीक दीपावली का त्योहार बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। एक समय था जब दीपावली में प्रत्येक घर मिट्टी के बने दीपकों से जगमगाया करता था। जिस कारण मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को भी खासी आमदनी हो जाती थी, तथा वह महीनों पहले से दिये बनाने का काम शुरू कर देते थे। किन्तु आधुनिकता के इस दौरा में विलासितापूर्ण जीवन शैली अपनाने के चलते मिट्टी के घड़ों की जगह फ्रिज व फ्रीजरों ने ले ली। जिससे इस काम में लगे लोगों का धंधा ही चौपट हो गया। इस आधुनिकता के युग ने कुम्हारों के पुस्तैनी धंधे को चौपट कर के रख दिया, जिससे कई परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच गये। वहीं अनेक परिवारों ने अपना पुस्तैनी धंधा छोड़ अनयत्र मेहनत मजदूरी करना शुरू कर दिया
। वहीं दीपावली के त्योहार पर भी लोग सिर्फ सुगन के दिये रखने के अलावा अपने घर में रोशनी करने के लिये चाइना निर्मित रंग बिरंगी लाइटों का प्रयोग करने लगे। चाइनीज लाइटों के प्रयोग के चलते मिट्टी के दियों की बिक्री में करीब 3-4 वर्ष से अप्रत्याशित गिरावट आई। मिट्टी के वर्तन बनाने वाले शंकरलाल प्रजापति ने बताया कि पहले कम से कम एक महीना पूर्व ही दिये बनाने लगता था। किन्तु जबसे चाइना की लाइटें प्रचलन में आईं दियों की बिक्री करीब बंद सी हो गई है। अनेक कुम्हारों ने तो दिये बनाने का काम ही बंद कर दिया है। चाइनीज लाइटों के प्रति लोगों का मोह कम न होते देख मिट्टी के दिये बनाने वालों को दीपावली में अपने घरों को रोशन करने की फिक्र सता रही है।
वहीं समासेवी राधे माेहन शुक्ला ने लाेगाें से अपील की है कि दीवाली के पावन पर्व पर अधिक से अधिक दिये खरीदें ताकि कुम्हाराें के घराें में भी अच्छे से दीवाली मन सके।
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(Udaipur Kiran) / पंकज मिश्रा
